लखनऊ। कभी वामपंथी उग्रवाद (Left-Wing Extremism) से प्रभावित रहे कांकेर जिले में आज एक नई कहानी लिखी जा रही है—विकास, भागीदारी और आकांक्षा की। बीजापुर, सुकमा, नारायणपुर जैसे पड़ोसी जिलों की तरह कांकेर ने भी उग्रवाद की छाया देखी है, लेकिन अब यह भारत सरकार के आकांक्षी जिलों (Aspirational Districts Programme – ADP) की सूची में शामिल है, और तेजी से प्रगति कर रहा है।

हाल ही में कांकेर में आयोजित एक वर्कशॉप इस बदलाव की जीवंत मिसाल थी। यह वर्कशॉप ‘धरती आबा जनभागीदारी अभियान’ के तहत आयोजित की गई थी, जो भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में 15 जून से शुरू किया गया है। खास बात यह है कि सिर्फ दो दिन में 17 जून तक यह कार्यक्रम कांकेर के दूरस्थ वन क्षेत्रों में सक्रिय हो गया, जो सरकार की तत्परता और गंभीरता को दर्शाता है।

जनभागीदारी से जनकल्याण

इस अभियान का मकसद साफ है, हर आदिवासी परिवार तक सरकारी योजनाओं की पहुंच सुनिश्चित करना, खासकर उन परिवारों तक जो अब तक किसी भी केंद्रीय योजना से वंचित हैं। सरकारी विभागों ने कैंप में अपने-अपने स्टॉल लगाकर PM आवास योजना, किसान सम्मान निधि, उज्ज्वला योजना, पेंशन, शौचालय निर्माण जैसी योजनाओं के लिए ऑन-द-स्पॉट रजिस्ट्रेशन किए।

जमीनी हकीकत: अमोदा से अंजनी तक

मेरी यात्रा में अमोदा, अंजनी, बांस पत्थर और थेगा जैसे गांवों में लोगों ने बताया कि उन्हें कई योजनाओं का लाभ मिल रहा है। अधिकतर गांव ODF (खुले में शौच से मुक्त) घोषित हो चुके हैं। लेकिन मोबाइल नेटवर्क की खराबी अब भी एक बड़ी चुनौती है, जो DBT (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) आधारित योजनाओं की प्रभावशीलता को प्रभावित कर रही है।

बदलाव के सूत्रधार: जिलाधिकारी निलेश कुमार क्षीरसागर

जिला प्रशासन की सक्रियता कांकेर की कहानी में निर्णायक भूमिका निभा रही है। DM निलेश कुमार क्षीरसागर के नेतृत्व में एक पुरानी इमारत को सेंट्रल लाइब्रेरी में बदला गया है, जो अब युवाओं के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी का हब बन चुकी है। उनका प्रशासनिक फोकस है, ‘इनोवेशन के साथ 100% डिलीवरी’।

एक नई सामाजिक तस्वीर

एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता ने दिलचस्प बात कही, अनुसूचित जाति (SC) समुदाय ने योजनाओं का लाभ उठाने में राजनीतिक जागरूकता के चलते तेजी पकड़ी है, जबकि अनुसूचित जनजाति (ST) अब भी कई बार पीछे रह जाती है। इसलिए ‘धरती आबा अभियान’ जैसे विशेष प्रयास बेहद जरूरी हो जाते हैं।

आंकड़े जो बदलाव की पुष्टि करते हैं

विश्व बैंक के अनुसार, बीते 10 सालों में 27 करोड़ भारतीयों ने अत्यधिक गरीबी से मुक्ति पाई है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का दावा है कि अब भारत की 64% आबादी किसी न किसी सोशल सिक्योरिटी नेट में शामिल है, जो 2019 में सिर्फ 24% थी।

कांकेर: एक नये भारत की प्रयोगशाला

इन तमाम प्रयासों के बीच कांकेर आज एक “नव-मध्यम वर्ग” (Neo-Middle Class) के उदय का गवाह बन रहा है—जो गरीब नहीं रह गया है, लेकिन अभी अमीर भी नहीं है, परन्तु उसकी आंखों में आकांक्षा और आत्मविश्वास है। कांकेर की बदलती कहानी भारत के जमीनी बदलाव की मिसाल है—जहां सरकार, समाज और लोगों की साझी कोशिशें एक बेहतर कल की बुनियाद रख रही हैं।

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