उत्तर प्रदेश में आगामी 2027 विधानसभा चुनाव की तैयारियों में भारतीय जनता पार्टी अपनी रणनीतियों को तेज़ कर चुकी है। भाजपा वालों ने तो जैसे पूरा पासा ही पलट दिया – जिन आंबेडकर को विपक्ष अपनी जमीन समझता था, अब उन्हीं के नाम पर भाजपा ने खोल दी है नई पट्टी! कल तक जिन्हें ‘मनुवादी’ कहा जाता था, आज वही आंबेडकर जी के हो गए ‘असली वारिस’! विपक्ष वाले तो मानो अब दांतों तले उंगली दबा रहे हैं!

दलित वोट बसपा-सपा की ‘जागीर’

2027 का चुनाव अब सिर्फ सीटों की नहीं, ‘आंबेडकर के विरासत’ की लड़ाई बनने वाली है! भाजपा ने आंबेडकर के विचारों को अपनी चुनावी धारा में इस तरह समाहित कर लिया है कि विपक्ष के पास जवाब देना भी मुश्किल हो गया है। पार्टी अब उन्हें अपनी नीतियों का हिस्सा बना कर दलितों और पिछड़ों को लुभाने की तैयारी कर रही है। और हां… जो लोग सोचते थे कि दलित वोट बसपा-सपा की ‘जागीर’ है, उन्हें भाजपा का ये नया चाल जरूर चौंकाएगा! आइए समझते हैं….

भाजपा का आंबेडकर कार्ड

दरअसल, BJP ने आंबेडकर की छवि को खास तौर पर उन वोटरों तक पहुँचाने का प्रयास किया है जो जातिवाद, सामाजिक असमानता और आर्थिक पिछड़ेपन से जूझ रहे हैं। पार्टी इस बात पर जोर दे रही है कि डॉ. आंबेडकर ने भारतीय समाज में जातिवाद और असमानता के खिलाफ आवाज़ उठाई थी, और उनकी नीतियों को लागू करने में भाजपा सरकार ने महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।

BJP के नेताओं का कहना है कि पार्टी ने समाज के हर वर्ग को समान अवसर देने का काम किया है और आंबेडकर के सिद्धांतों को प्रोत्साहित किया है। यही कारण है कि भाजपा, 2027 के चुनावों में, डॉ. आंबेडकर के योगदान को प्रमुखता से प्रचारित कर रही है।

विपक्ष के नैरेटिव को चुनौती

BJP विपक्ष, खासकर समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा), के जातिवाद और सामाजिक न्याय के मुद्दों को लेकर कड़ी चुनौती देने की योजना बना रही है। विपक्ष द्वारा यह आरोप लगाया जाता है कि भाजपा ने दलितों और पिछड़े वर्गों के हितों की अनदेखी की है, लेकिन भाजपा अब आंबेडकर के विचारों को केंद्रीय बना कर इस आरोप का जवाब दे रही है।

इसके अलावा, भाजपा ने आंबेडकर के प्रति अपनी निष्ठा दिखाने के लिए उनके जन्मदिन (14 अप्रैल) पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किए हैं। पार्टी के नेता इस दिन को “समाज के हर वर्ग के लिए समर्पित दिन” के रूप में प्रचारित करने की योजना बना रहे हैं।

भाजपा की रणनीति

  1. आंबेडकर पर जोर: भाजपा नेता अब सार्वजनिक कार्यक्रमों में आंबेडकर के विचारों को उद्धृत कर रहे हैं। पार्टी ने दलित नेताओं को आगे करके यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह आंबेडकर के सपनों को पूरा करने वाली पार्टी है।
  2. विपक्ष को चुनौती: समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) लंबे समय से दलित वोटों पर दावा करती रही हैं। भाजपा उनके इस नैरेटिव को तोड़ने के लिए आंबेडकर को अपना प्रतीक बना रही है।
  3. सरकारी योजनाओं का प्रचार: पार्टी दलितों के लिए चलाई जा रही योजनाओं, जैसे “मिशन शक्ति”, “अंबेडकर आवास योजना” और “SC/ST छात्रवृत्ति” को हाइलाइट कर रही है।

विपक्ष का रुख

विपक्ष, खासकर सपा और बसपा, का कहना है कि भाजपा ने असल में समाज के कमजोर वर्गों को धोखा दिया है और उनके मुद्दों को हल करने के बजाय, केवल चुनावी लाभ के लिए उनका इस्तेमाल किया है। विपक्ष का आरोप है कि भाजपा ने आंबेडकर के विचारों को केवल एक राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया है, न कि उन्हें वास्तविक रूप से लागू करने में कोई ठोस कदम उठाए हैं।

आंबेडकर के नाम पर वोट बटोरने की कोशिश

सपा और बसपा का कहना है कि भाजपा ने आंबेडकर के नाम पर वोट बटोरने की कोशिश की है, लेकिन जब सत्ता में आई है, तो उसने दलितों और पिछड़ों के लिए कोई ठोस नीतियाँ नहीं बनाई। वे भाजपा के कार्यक्रमों और योजनाओं की सच्चाई को जनता के सामने लाने की कोशिश करेंगे।

‘आंबेडकर की विरासत’ की लड़ाई

अब देखना ये है कि मायावती और अखिलेश, योगी-मोदी की इस चाल का क्या जवाब देंगे! क्या वो आंबेडकर के विचारों को लेकर बीजेपी के इस “ऑल-इन” दांव का मुकाबला कर पाएंगे, या फिर विपक्ष का नैरेटिव पूरी तरह से टूट जाएगा? वक्त अब तय करेगा कि ये ‘आंबेडकर की विरासत’ की लड़ाई किसकी होती है!

14 April 2025 | UP News | Uttar Pradesh Ki Taja Khabar | UP Politics | CM Yogi | Akhilesh |

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