जयंत चौधरी ने अपनी लेखनी में एक महत्वपूर्ण विचार रखा है, जो हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है। उनका कहना है कि अगर हम अपने बच्चों को खेलों और शिक्षा दोनों में एक साथ प्रशिक्षित करें, तो हम भविष्य के खेल चैंपियनों को जन्म दे सकते हैं।
हमारे समाज में यह धारणा बन चुकी है कि सिर्फ शिक्षा ही सफलता का एकमात्र रास्ता है, और खेलों को एक जोखिम समझा जाता है। ऐसे में जो बच्चे खेलों में अपनी पहचान बनाना चाहते हैं, उन्हें अक्सर शिक्षा के साथ समझौता करना पड़ता है। यह स्थिति तब और भी मुश्किल हो जाती है, जब परिवार आर्थिक असुरक्षा के कारण बच्चों को खेलों के बजाय शिक्षा को प्राथमिकता देने को मजबूर होते हैं।
लेकिन अगर हम खेलों और शिक्षा को एक साथ जोड़ने वाले संस्थानों की कल्पना करें, तो यह बच्चों के लिए दोहरी सफलता का रास्ता खोल सकता है। एक ऐसा नेटवर्क, जो बच्चों को खेलों में उत्कृष्टता हासिल करने के साथ-साथ एक मजबूत शैक्षिक आधार भी प्रदान करे। इससे न केवल बच्चों की शारीरिक और मानसिक सेहत को लाभ होगा, बल्कि यह पूरे देश में खेलों के प्रति जागरूकता और रुचि को भी बढ़ावा देगा।
जयंत चौधरी का यह विचार एक नई दिशा को सुझाता है, जिसमें खेलों को एक गंभीर करियर विकल्प के रूप में देखा जाएगा, न कि महज शौक या समय बिताने का तरीका। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि ऐसे संस्थानों की संरचना को इस तरह से तैयार किया जाए कि प्रत्येक बच्चे की क्षमता और रुचि को पहचाना जाए और उसे सही दिशा में प्रशिक्षित किया जाए।
इस मॉडल का उद्देश्य केवल पदक जीतना नहीं है, बल्कि यह समाज के दृष्टिकोण को बदलने का भी है। इस तरह के संस्थान न केवल खेल के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन करने वाले बच्चे तैयार करेंगे, बल्कि उन बच्चों के लिए भी एक उज्जवल भविष्य तैयार करेंगे जो खेल में तो सफलता नहीं पा सके, लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ सकते हैं।
इस विचार को लागू करना चुनौतीपूर्ण जरूर होगा, लेकिन अगर सभी मंत्रालय, खेल संघ और स्थानीय सरकार मिलकर काम करें, तो यह भारत में खेलों के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।
जयंत चौधरी का यह दृष्टिकोण यह साबित करता है कि अगर सही अवसर मिले तो हर बच्चा अपना सपना पूरा कर सकता है, चाहे वह गोल्ड जीते या न जीते, खेलों से जो सीख मिलती है, वही सबसे बड़ी जीत होती है।