Siddharthnagar Piprahwa Ratna Return News. भगवान बुद्ध से जुड़ी भारत की आस्था और विरासत को एक बार फिर सम्मान मिला है। 127 वर्षों के बाद पिपरहवा से प्राप्त भगवान बुद्ध के पवित्र रत्न बुधवार को भारत लौट आए हैं। यह रत्न हांगकांग की मशहूर नीलामी संस्था ‘सदबी’ द्वारा नीलामी के लिए रखे गए थे, लेकिन भारत सरकार के सख्त हस्तक्षेप और एक उद्योगपति की पहल से यह भारत की झोली में वापस आए।

गोदरेज इंडस्ट्रीज़ समूह के पीरोजशा गोदरेज ने इन 349 रत्नों को निजी स्तर पर खरीदा और भारत को सौंप दिया। यह जानकारी केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के अधिकारियों ने दी। हालांकि, इस ऐतिहासिक खरीद का मूल्य सार्वजनिक नहीं किया गया, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार इसकी अनुमानित कीमत 100 मिलियन डॉलर (करीब 830 करोड़ रुपये) से अधिक है।

केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने इसे ‘जन-निजी साझेदारी’ (Public-Private Partnership) का अद्भुत उदाहरण बताया। उन्होंने कहा कि इस संग्रह का बड़ा हिस्सा अगले पांच वर्षों तक राष्ट्रीय संग्रहालय को लोन पर दिया जाएगा, जबकि पूरे संग्रह को भारत आगमन के बाद तीन महीने के लिए प्रदर्शित भी किया जाएगा।

पीएम मोदी का संदेश

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर लिखा, भगवान बुद्ध के पवित्र पिपरहवा अवशेषों के 127 वर्षों बाद भारत लौटने से हर भारतीय को गर्व होगा। ये अवशेष भगवान बुद्ध और उनकी शिक्षाओं से भारत के गहरे संबंध को दर्शाते हैं और हमारी सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को भी प्रकट करते हैं।

क्या है पिपरहवा अवशेष का इतिहास?

1898 में उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर ज़िले में भारत-नेपाल सीमा के पास स्थित पिपरहवा नामक स्थान पर एक प्राचीन बौद्ध स्तूप की खुदाई के दौरान ये अवशेष मिले थे। खुदाई का नेतृत्व ब्रिटिश नागरिक विलियम क्लैक्सटन पेप्पे ने किया था। उस समय से इन अवशेषों के एक हिस्से को कोलकाता स्थित इंडियन म्यूज़ियम में सुरक्षित रखा गया है, जिनमें भगवान बुद्ध की अस्थियाँ, साबुन पत्थर व क्रिस्टल के पात्र और बलुआ पत्थर का पात्र शामिल हैं।

नीलामी के लिए पेश किए गए रत्न और गहने उसी खुदाई में प्राप्त हुए थे और पेप्पे परिवार की निजी संपत्ति बन गए थे। पेप्पे के वंशज क्रिस पेप्पे ने इन्हें हांगकांग स्थित सदबी की नीलामी में मई 2025 में रखा, लेकिन भारत सरकार की सख्ती के बाद 7 मई की नीलामी स्थगित कर दी गई।

भारत सरकार की सख्त कार्रवाई

संस्कृति मंत्रालय और पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) ने न केवल सदबी को कानूनी नोटिस भेजा, बल्कि हांगकांग स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास को सक्रिय करते हुए इस नीलामी को रुकवाया। ब्रिटेन की संस्कृति सचिव लीज़ा नैंडी से भी मंत्री शेखावत ने इस मुद्दे को उठाया, हालांकि ब्रिटिश सरकार ने इसे निजी संपत्ति बताते हुए हस्तक्षेप करने में असमर्थता जताई।

सांस्कृतिक युद्ध में भारत की रणनीतिक जीत

यह कदम भारत की उस रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसमें चीन के प्रभाव वाले क्षेत्रों में बौद्ध विरासत पर भारत की दावेदारी को मजबूती देने का प्रयास किया जा रहा है। साथ ही सरकार ने इस मामले को व्यापारिक सौदे की बजाय सांस्कृतिक पुनर्प्राप्ति के तौर पर दिखाकर नैतिक दृष्टिकोण को बरकरार रखा।

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