New Delhi : जब दुनिया की निगाहें यूक्रेन और गाज़ा में चल रहे संघर्षों पर टिकी थीं, भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ एक ऐसा सैन्य अभियान चलाया जिसने वैश्विक सैन्य रणनीति की नई दिशा तय की—‘ऑपरेशन सिंदूर’। भले ही इसकी अवधि सीमित रही हो, पर इसकी गूंज रणनीतिक, तकनीकी और राजनीतिक क्षेत्रों में दूर तक सुनाई दी है। यह एक ऐसा अभियान था जो आधुनिक युद्ध के सभी पहलुओं—स्पीड, मल्टी-डोमेन समन्वय, सटीकता और सूचना युद्ध—में गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

स्पष्ट राजनीतिक मंशा और संतुलित आक्रामकता

इस बार भारत की प्रतिक्रिया में कोई अस्पष्टता नहीं थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमले के तुरंत बाद स्पष्ट कर दिया कि आतंक और उसके संरक्षकों को अब जवाब मिलेगा—सटीक, ठोस और समयबद्ध। पाकिस्तान जैसे परमाणु संपन्न पड़ोसी के खिलाफ इतना स्पष्ट रुख पहले कम ही देखने को मिला था। भारत ने रणनीतिक तौर पर युद्ध की ‘न्यूनतम लेकिन निर्णायक’ नीति अपनाई, जिससे युद्ध का विस्तार रोका गया, पर संदेश बेहद स्पष्ट गया।

ऑपरेशनल चपलता और संयुक्त अभियानों का नज़ारा

ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय सेनाओं ने बेहतरीन समन्वय और गति दिखाई। नौ आतंकवादी ठिकानों पर एक साथ हमले किए गए, जिनमें बहावलपुर और मुरिदके जैसे आतंकी संगठनों के गढ़ शामिल थे। हवाई, ड्रोन और क्रूज़ मिसाइलों के संयोजन से ऐसे सटीक वार किए गए कि आतंकियों की कमर टूट गई।

सैन्य सूत्रों के अनुसार, इस अभियान में वायुसेना, खुफिया एजेंसियों और साइबर इकाइयों ने घनिष्ठ समन्वय के साथ कार्य किया। वायु रक्षा प्रणालियों की तैनाती और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर की उपयोगिता भी उजागर हुई।

तकनीक और साइबर शक्ति का नया प्रयोग

जहां यूक्रेन युद्ध ने ड्रोन और साइबर हमलों के महत्त्व को उजागर किया, वहीं भारत ने भी सिंदूर में इन दोनों क्षेत्रों में श्रेष्ठता दिखाई। पाकिस्तानी संचार व्यवस्था और कुछ एयर डिफेंस सिस्टम ऑपरेशन के दौरान प्रभावित हुए, जो भारत की साइबर क्षमताओं का प्रमाण था। यह संकेत है कि आधुनिक युद्ध अब सिर्फ सीमा पर नहीं, डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मोर्चों पर भी लड़ा जाता है।

सूचना युद्ध, नैरेटिव की जीत

21वीं सदी में युद्ध सिर्फ रणभूमि पर नहीं, बल्कि सार्वजनिक धारणा के क्षेत्र में भी लड़ा जाता है। भारत ने सिंदूर के दौरान सूचना को नियंत्रित तरीके से जारी किया, आधिकारिक वक्तव्यों में संयम बरता गया और मीडिया को समय पर जानकारी दी गई। इसके विपरीत, पाकिस्तान की दुष्प्रचार कोशिशों को भारत की एजेंसियों और डिजिटल सत्यापनकर्ताओं ने तुरंत खंडित किया।

जल, ज़मीन और समुद्र, पारंपरिक अवधारणाओं से परे

ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय थल सेना की पारंपरिक तैनाती की ज़रूरत नहीं पड़ी। इसके बावजूद पाकिस्तान की ज़मीन पर भारतीय जवाब ने उसे चौंका दिया। क्या यह एक नए सैन्य युग की शुरुआत है जहां ‘हर इंच जमीन की रक्षा’ की रणनीति बदल रही है? ऐसा लगता है कि भारत अब कम संसाधनों में भी अधिक प्रभावी जवाब देने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

पानी को बनाया राजनीतिक हथियार

सिंदूर का एक अनूठा पक्ष था—राजनीतिक युद्ध का प्रयोग। भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित कर पाकिस्तान को चेतावनी दी कि अब पारंपरिक सहयोग भी जोखिम में हैं। यह कदम युद्ध की परिभाषा को और व्यापक बनाता है, जहां कूटनीति भी एक हथियार बन सकती है।

विश्व के लिए संदेश, आधुनिक युद्ध की नई तस्वीर

ऑपरेशन सिंदूर से दुनिया भर की सेनाओं और नीति निर्माताओं को कई स्पष्ट संकेत मिले हैं:

बड़े राष्ट्रों के लिए: युद्ध की परंपरागत सीमाओं के भीतर रहते हुए भी ठोस और नियंत्रित जवाब संभव है।

मध्यम शक्तियों के लिए, ड्रोन, साइबर और ISR जैसे असममित संसाधनों में निवेश ज़रूरी है।

सभी के लिए, युद्ध अब केवल गोला-बारूद या सैनिकों का नहीं, बल्कि तकनीक, सूचना और नीति का भी है।

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