Nepal Protests 2025. हिमालय की गोद में बसे नेपाल में हालिया राजनीतिक घटनाक्रम ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है। प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली और उनकी सरकार ने जनता पर धीरे-धीरे नियंत्रण कसा, लेकिन जनता ने बर्दाश्त करना बंद कर दिया।

चीन की SCO बैठक से लौटने के बाद ओली ने स्वयं को और ताकतवर महसूस किया। उन्हें चीन का पूरा समर्थन प्राप्त था, जबकि उनकी नज़दीकियाँ भारत से कम थीं। इसी भरोसे के साथ, ओली और उनकी टीम ने एक नया नियम बनाया: सभी सोशल मीडिया कंपनियों को सरकार में रजिस्ट्रेशन करवाना होगा और उपयोगकर्ता डेटा साझा करना अनिवार्य था।

अमेरिकी और अन्य विदेशी कंपनियों ने इस आदेश का पालन करने से इनकार किया। ओली ने इसके जवाब में सख्त प्रतिबंध लगा दिए, जिससे जनता और कारोबारी वर्ग में असंतोष बढ़ा। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध ने जनता की नाराजगी और बढ़ा दी।

नेपाल में वही स्क्रिप्ट दोहराई गई जो श्रीलंका और बांग्लादेश में देखी गई थी: जनता ने तुरंत विरोध करना शुरू कर दिया। प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरे, नारेबाजी की और प्रदर्शन तेज़ी से हिंसक रूप ले गया।

परिणामस्वरूप, सरकार 20 घंटे के भीतर पूरी तरह गिर गई। संसद भवन, सरकारी इमारतें और प्रमुख संस्थान प्रदर्शनकारियों के हाथों प्रभावित हुए। प्रधानमंत्री ओली को भागना पड़ा और उन्होंने राजनीति, इज्जत और सत्ता सभी खो दी।

विश्लेषक मानते हैं कि ओली की यह गलती थी कि उन्होंने जनता और अंतरराष्ट्रीय व्यवसायिक समुदाय के साथ संवाद और समझौते का रास्ता अपनाया नहीं। जनता ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि लोकतंत्र और स्वतंत्रता के खिलाफ कोई कार्रवाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

नेपाल में हुई यह क्रांति जनता की सामूहिक शक्ति और युवा आंदोलन की शक्ति को दर्शाती है। सोशल मीडिया प्रतिबंध और सरकार के निर्णय ने जनता को एकजुट किया और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए उन्हें सड़कों पर उतारा।

इस घटना से यह भी स्पष्ट होता है कि राजनीतिक अस्थिरता, विदेशी संबंधों और जनता के समर्थन का संतुलन किसी भी सरकार के लिए निर्णायक भूमिका निभा सकता है। नेपाल की जनता ने साबित कर दिया कि लोकतंत्र में सत्ता का असली आधार जनता की आवाज़ और उसका समर्थन है।

नेपाल की इस क्रांति ने वैश्विक राजनीति में भी चर्चा पैदा की है और दिखाया है कि नागरिक आंदोलनों के माध्यम से लोकतांत्रिक बदलाव तेज़ी से संभव हैं।

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