Meerut: शिक्षा का मकसद होता है ईमानदारी, मेहनत और ज्ञान का सही आकलन करना। लेकिन जब खुद विश्वविद्यालय ही इस बात को भूल जाए, तो सवाल उठना लाजमी है। मेरठ के नैक++ CCS विश्वविद्यालय ने हाल ही में कुछ ऐसा किया है, जिसने हर किसी को हैरान कर दिया। जहां 70 नंबर की परीक्षा होती है, वहां कुछ छात्राओं को 80 नंबर तक बांट दिए गए। आप सोच रहे होंगे, ये कैसे संभव है? चलिए विस्तार से समझते हैं पूरा मामला।
मामला क्या है?
MA होमसाइंस की छात्राओं को मिली परीक्षा की मार्कशीट में बड़े अजीबोगरीब नंबर दिख रहे हैं। 70 पूर्णांक की परीक्षा में 74, 75, 78, 79, और यहां तक कि 80 नंबर तक दिए गए हैं। सबसे ज़्यादा नंबर मिले हैं छात्रा शबीना को, जिन्हें 70 में से 80 नंबर दिए गए! यानी, छात्रा को आधिकारिक तौर पर इतनी मेहनत के बिना ही अधिक नंबर दे दिए गए। वहीं, व्यवहारिक परीक्षा में भी नंबरों का खेल साफ दिख रहा है — ऐसे नंबर जो पढ़ाई और परिश्रम से मेल नहीं खाते।
जांच कहां है?
अब सवाल ये उठता है कि जब ऐसी गड़बड़ी हो रही थी, तो परीक्षा नियंत्रक और विश्वविद्यालय के उच्च अधिकारियों की निगरानी कहां थी? क्या वे सचमुच इस कुकर्म से अनजान थे, या जानबूझकर आंखें बंद किए बैठे रहे? अगर उन्होंने समय रहते इस पर ध्यान दिया होता तो छात्राओं के भविष्य के साथ ये खिलवाड़ नहीं होता।
क्यों है ये समस्या गंभीर?
जब कोई मेहनत किए बिना ज्यादा नंबर पा जाता है, तो सचमुच मेहनत करने वाले छात्र पीछे रह जाते हैं। नैक++ जैसे नाम के साथ जुड़े विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा पर बड़ा सवाल उठता है। ऐसे मामलों से छात्रों और अभिभावकों का शिक्षा प्रणाली पर भरोसा टूटता है।
अब क्या होना चाहिए?
यह समय है कि विश्वविद्यालय तुरंत मामले की गहन जांच कराए और दोषी शिक्षकों व अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे। साथ ही परीक्षा प्रक्रिया को और पारदर्शी और कड़क बनाया जाए ताकि भविष्य में ऐसी गलतियां दोबारा न हों।
नतीजा — एक सबक जो सभी के लिए ज़रूरी है
नैक++ CCS विश्वविद्यालय की ये लापरवाही हमें ये याद दिलाती है कि शिक्षा केवल नंबर बांटने का खेल नहीं, बल्कि ईमानदारी और जिम्मेदारी का नाम है। हर छात्र का हक है कि उसकी मेहनत सही तरीके से पहचानी जाए। विश्वविद्यालय को चाहिए कि वह अपनी छवि सुधारने के लिए गंभीर कदम उठाए और छात्रों के भरोसे को फिर से हासिल करे।