Momos History: देश के कई हिस्सों कई सारे चींजे खाने में लोगों को पसंद आती है…और चाइनीज स्ट्रीट डीश तो कई तरीके का लोग खाना पसंद करते हैं…इसमें चाउमीन और मोमो लिस्ट में सबसे ऊपर आते है…तो चलिए आज हम आपको बतातें हैं मोमो का इतिहास क्या है…मोमो खाना लोगों को पसंद क्यों आता है…ऐसा क्या मोमों में और कहां से ये बनना सबसे पहले शुरु हुआ था…ये सबकुछ हम आपको बतातें है…
मोमोज को लेकर अक्सर यह सवाल उठता है कि इसकी उत्पत्ति कहां से हुई. बता दें कि नेपाल, चीन या तिब्बत? नेपाल की रेस्ट्रां और टूरिज्म इंडस्ट्री इसे नेपाली व्यंजन मानती है, जबकि ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, इसकी जड़ें तिब्बत से जुड़ी हैं।
भारत में कब और कैसे पहुंचे मोमोज?
1960 के दशक में तिब्बती शरणार्थियों के भारत आने के बाद मोमोज भी भारत पहुंचे। लद्दाख, सिक्किम, दार्जिलिंग, धर्मशाला और दिल्ली जैसे क्षेत्रों में यह व्यंजन लोकप्रिय हुआ। यही कारण है कि इन क्षेत्रों में मोमोज के ऑथेंटिक टेस्ट और विविध वैरायटी देखने को मिलती हैं।
व्यापारी से फैला स्वाद
एक अन्य दावा यह भी किया जाता है कि काठमांडु के एक व्यापारी ने तिब्बत से मोमोज की रेसिपी को भारत लाकर इसे लोकप्रिय बनाया। इसके बाद यह व्यंजन पूर्वोत्तर भारत से होते हुए पूरे देश में फैल गया। आज पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश और असम जैसे राज्यों में मोमोज को क्षेत्रीय व्यंजनों में गिना जाता है।
क्यों बना तिब्बत में स्टीम्ड फूड?
इतिहासकारों के अनुसार मोमोज की उत्पत्ति तिब्बत में हुई, जहां ठंडे मौसम के कारण स्टीम्ड फूड का चलन था। ऐसे भोजन लंबे समय तक गर्म और सुरक्षित रहते थे। ‘मोमो’ शब्द भी तिब्बती भाषा का है, जिसका अर्थ होता है “भाप में पकी हुई ब्रेड या डंपलिंग।”
चीनी व्यंजनों से मिली प्रेरणा?
कुछ इतिहासकार मानते हैं कि मोमोज की रेसिपी चीनी डंपलिंग जियाओज़ी और बाओज़ी से प्रेरित है। यह रेसिपी तिब्बत पहुंची और वहां के स्थानीय स्वाद के अनुसार ढल गई। इसके बाद यह नेपाल और फिर भारत तक पहुंच गई।
वैरायटी में आया बदलाव
पहले जहां मोमोज केवल स्टीम्ड होते थे, अब फ्राइड, तंदूरी, पनीर, कॉर्न और चॉकलेट जैसे नए फ्लेवर में भी उपलब्ध हैं। भारत में यह युवाओं का पसंदीदा स्ट्रीट फूड बन चुका है।