Danger of Lung Cancer Without Smoking: अब तक फेफड़ों के कैंसर (Lung Cancer) को धूम्रपान (Smoking) से जोड़कर देखा जाता रहा है, लेकिन अब तस्वीर बदल रही है। विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसे हजारों मामले सामने आ रहे हैं, जहां मरीजों ने कभी धूम्रपान नहीं किया, फिर भी उन्हें लंग कैंसर हो गया है। सवाल ये उठता है… आखिर इसके पीछे वजह क्या है? आइए जानते हैं।
1. वायु प्रदूषण: छुपा हुआ खतरनाक दुश्मन
बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग और लगातार बिगड़ती हवा की गुणवत्ता लंग कैंसर का बड़ा कारण बनती जा रही है। खासतौर पर शहरों में वाहनों से निकलने वाला धुआं, फैक्ट्रियों की गैसें और PM 2.5 जैसे सूक्ष्म कण फेफड़ों में जाकर कैंसर को जन्म देते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली, मुंबई जैसे मेट्रो शहरों में रहने वाले लोग सबसे ज्यादा खतरे में हैं।
2. रसोई का धुआं: महिलाओं के लिए खतरे की घंटी
ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में आज भी कई घरों में लकड़ी, कोयला या गोबर के उपलों पर खाना बनाया जाता है। इससे निकलने वाला धुआं फेफड़ों को लंबे समय तक नुकसान पहुंचाता है।
खासकर महिलाएं, जो घंटों तक रसोई में रहती हैं, वे इस धुएं के संपर्क में ज़्यादा आती हैं और अनजाने में लंग कैंसर का शिकार बन जाती हैं।
3. रेडॉन गैस: नजर न आने वाला ज़हर
रेडॉन एक रंगहीन और गंधहीन गैस होती है, जो जमीन, पत्थरों और पुराने निर्माण सामग्री से निकलती है। यह खासतौर पर बेसमेंट और कम हवादार जगहों में जमा हो जाती है। हालांकि भारत में यह विषय अभी उतना चर्चित नहीं है, लेकिन अमेरिका और यूरोपीय देशों में रेडॉन को लंग कैंसर का प्रमुख कारण माना जाता है।
4. फैक्ट्रियों और खदानों का धुआं: औद्योगिक जोखिम
जो लोग खदानों, निर्माण स्थलों या फैक्ट्रियों में काम करते हैं, वे एस्बेस्टस, कोयले की धूल और अन्य रासायनिक गैसों के लगातार संपर्क में रहते हैं। इन जगहों पर सांस लेना भी फेफड़ों के लिए जानलेवा हो सकता है। ऐसे कर्मचारी लंबे समय बाद लंग कैंसर का शिकार बन सकते हैं, भले ही वे धूम्रपान न करते हों।
लंग कैंसर से बचाव के उपाय क्या हैं?
- भीड़भाड़ और प्रदूषित इलाकों में मास्क पहनें
- रसोई में चिमनी लगाएं और वेंटिलेशन रखें
- घर में रेडॉन गैस की जांच कराएं
- समय-समय पर हेल्थ चेकअप कराएं
- साफ हवा में सुबह की सैर करें
लंग कैंसर अब सिर्फ धूम्रपान करने वालों तक सीमित नहीं रह गया है। बढ़ता वायु प्रदूषण, घरेलू धुआं, रेडॉन गैस और औद्योगिक कण भी फेफड़ों के सबसे बड़े दुश्मन बन चुके हैं। इसलिए ज़रूरत है सतर्क रहने की, सावधानी बरतने की और समय पर जांच कराने की। सांस बचाइए, ज़िंदगी बचाइए।
Disclaimer: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। किसी भी स्वास्थ्य समस्या या इलाज के लिए डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।