Uttar Pradesh: लखनऊ की सड़कों पर रोज़ी कमाने वालों के लिए अब दुकान लगाना भी किसी प्रॉपर्टी डील की तरह हो गया है। अगर आप KGMU से शताब्दी हॉस्पिटल तक ठेला या दुकान लगाना चाहते हैं, तो पहले जेब में 15 हजार रुपये लेकर आइए, और पुलिस चौकी से सेटिंग कराइए!

जी हां, लारी के बाहर का ये पूरा इलाका मानो अब ठेले पर दुकान नहीं, रेट पर दुकान का अड्डा बन चुका है। सड़क के दोनों तरफ दर्जनों ठेले – और हर ठेला किसी न किसी चौकी से “पास” होता है। दुकान लगाने से पहले किस चौकी के अंतर्गत आते हैं, ये तय करो, फिर हर महीने तय रकम भरो, तब जाकर सड़क पर रोज़गार की जगह मिलती है।

सबसे दिलचस्प बात ये है कि ये पूरा इलाका दो थानों की सीमा में आता है – वजीरगंज और चौक कोतवाली। और दोनों ही तरफ के “रेट” अलग-अलग तय होते हैं। कह सकते हैं कि सड़क तो सरकारी है, लेकिन कब्जा और किराया “व्यवस्था” की जेब में जाता है।

अब सवाल ये उठता है — क्या फुटपाथ पर दुकान लगाना भी अब बिना “चढ़ावे” के मुमकिन नहीं? और क्या इस खुले खेल को देखकर प्रशासन भी आंख मूंदे हुए है?

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