International Men’s Day: 19 नवंबर को ‘अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस’ मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य पुरुषों से जुड़े मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाना है। इस दिन को मनाने का एक महत्वपूर्ण कारण पुरुषों से जुड़ा एक गंभीर मुद्दा है, और वह है आत्महत्या। आंकड़े बताते हैं कि आत्महत्या की दर पुरुषों में महिलाओं के मुकाबले कहीं ज्यादा है, और यह एक वैश्विक समस्या बन चुकी है।
आत्महत्या की दर में पुरुषों का बढ़ा प्रतिशत
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, हर साल दुनियाभर में 7.27 लाख लोग आत्महत्या कर लेते हैं, जिनमें 15 से 29 साल के युवाओं के लिए यह मौत की तीसरी सबसे बड़ी वजह है। आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका, साउथ कोरिया, जापान और भारत जैसे देशों में पुरुषों में आत्महत्या की दर महिलाओं से कहीं अधिक है। भारत में 2023 में 1.71 लाख आत्महत्या के मामले सामने आए, जिनमें से 73% मामलों में पुरुष थे।
आत्महत्या के कारण
आत्महत्या के प्रमुख कारणों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, नशे की लत, और रिश्तों से जुड़ी समस्याएं प्रमुख हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में आत्महत्या करने की मुख्य वजह बीमारी रही, जिसमें 32,503 मौतें हुईं। इसके अलावा, नशे की लत और शादी से जुड़ी समस्याएं भी आत्महत्या के प्रमुख कारण बने।
पुरुषों में आत्महत्या की दर अधिक क्यों?
एक बड़ी वजह यह मानी जाती है कि पुरुषों को समाज में मानसिक मजबूती और शारीरिक ताकत के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। इस कारण वे अपनी मानसिक परेशानियों को छुपाते हैं और मदद लेने में हिचकिचाते हैं। एक अध्ययन में यह पाया गया कि 40% पुरुष अपनी मानसिक स्थिति के बारे में कभी किसी से बात नहीं करते। इसके अलावा, पुरुष अधिक खतरनाक तरीकों का इस्तेमाल करते हैं जैसे फांसी, जहर, या ट्रेन के सामने कूदना, जिससे आत्महत्या का प्रतिशत अधिक होता है।
समाज की मानसिकता और नशे की लत
महिलाओं की तुलना में पुरुष अधिक नशे की लत का शिकार होते हैं, और नशा आत्महत्या की प्रवृत्ति को बढ़ाता है। इसके साथ ही, समाज में पुरुषों के लिए ‘मजबूती’ का जो दबाव है, वह मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ावा देता है।
इसलिए, ‘अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस’ का महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि यह पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान आकर्षित करता है और उनकी समस्याओं को समझने की कोशिश करता है। आत्महत्या की दर में सुधार के लिए जरूरी है कि समाज में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़े और पुरुषों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की स्वतंत्रता मिले।



