India weaving development: भारत की रेशम गाथा केवल परंपरा की कहानी नहीं है, बल्कि यह परिवर्तन और विजय का एक प्रेरणादायक अध्याय भी है। वर्ष 2023-24 में देश ने 38,913 मीट्रिक टन कच्चे रेशम का उत्पादन किया और ₹2,027.56 करोड़ मूल्य के रेशमी उत्पादों का निर्यात किया, जिससे भारत ने दुनिया में दूसरे सबसे बड़े रेशम उत्पादक और सबसे बड़े उपभोक्ता के रूप में अपनी स्थिति मजबूत की है। वस्त्र मंत्रालय के अनुसार, सरकार की ‘सिल्क समग्र’ जैसी योजनाओं के माध्यम से अब तक 78,000 से अधिक लोगों को लाभ मिल चुका है। भारत का रेशम क्षेत्र अब सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ आर्थिक सशक्तिकरण भी बुन रहा है। कांचीपुरम की दमकती साड़ियों से लेकर भागलपुर के तसर की मिट्टी जैसी सादगी तक—रेशम ग्रामीण भारत में आजीविका और विरासत के बीच एक मजबूत सेतु बन गया है।
रेशम सदियों से भारत के इतिहास, संस्कृति और शिल्प कौशल को जोड़ने वाला एक धागा रहा है। कांचीपुरम साड़ियों के चमकदार रंगों से लेकर भागलपुर तसर की देहाती खूबसूरती तक, हर रेशमी वस्त्र अपनी एक अनोखी कहानी कहता है। ये साड़ियाँ शुद्ध मुलबरी रेशम से बुनी जाती हैं, जिन्हें कुशल कारीगरों द्वारा पीढ़ी-दर-पीढ़ी चले आ रहे हुनर से तैयार किया जाता है। जब करघे पर उनके हाथों की लय गूंजती है, तो रेशम सिर्फ कपड़ा नहीं रह जाता—वह भारत की कला और सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत प्रतीक बन जाता है।
रेशम की यात्रा की शुरुआत होती है सेरीकल्चर यानी रेशम कीट पालन से, जो एक प्राचीन प्रक्रिया है। ये कीट मुलबरी, ओक, अरजुन और अरंडी के पत्तों पर पाले जाते हैं। एक महीने के भीतर, ये कोया बनाते हैं, जिन्हें बाद में उबालकर मुलायम किया जाता है। इन कोयों से महीन धागे सावधानीपूर्वक निकाले जाते हैं, जिन्हें सूत में काता जाता है और फिर लक्ज़री कपड़ों में बुना जाता है। यह जटिल प्रक्रिया छोटे-से कीट को चमकदार कृति में बदल देती है।
भारत दुनिया में रेशम का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और सबसे बड़ा उपभोक्ता है। यहां मुलबरी रेशम का बोलबाला है, जो देश के कुल कच्चे रेशम उत्पादन का 92% है। हालांकि, भारत झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और पूर्वोत्तर राज्यों जैसे क्षेत्रों में गैर-मुलबरी या वन्य रेशम (वन्या रेशम) का भी उत्पादन करता है। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर और पश्चिम बंगाल में उगाया जाने वाला मुलबरी रेशम अपनी मुलायम बनावट और चमक के लिए प्रसिद्ध है। वहीं वन्या रेशम, जो जंगली रेशम कीटों से प्राप्त होता है, अधिक सख्त और टिकाऊ होता है तथा इसकी बनावट अधिक प्राकृतिक होती है।
हालांकि वैश्विक कपड़ा उत्पादन में रेशम की हिस्सेदारी केवल 0.2% है, लेकिन भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में इसकी भूमिका बेहद अहम है। यह पिछड़े क्षेत्रों में रोजगार का साधन बनता है और विदेशी मुद्रा कमाने का एक प्रमुख जरिया भी है।