अदाणी इंटरनेशनल स्कूल के 17 वर्षीय छात्र, आहान रितेश प्रजापति, जो जन्मजात रूप से लाल और हरे रंग की दृष्टि में कमी (रंग अंधता) के साथ पैदा हुए थे, ने अब एक ऐसा मशीन-लर्निंग मॉडल विकसित किया है जो पाठ्यपुस्तकों के चित्र और नक्शों को रंग अंध छात्रों के लिए अनुकूलित करता है।
आहान ने बताया कि उनके इस सफर में उनके स्कूल का निरंतर सहयोग बहुत महत्वपूर्ण रहा। उन्होंने कहा, “मुझे समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का अवसर मिलने के लिए मैं गहराई से आभारी महसूस करता हूँ।”
आहान ने साझा किया कि बचपन में उन्हें प्रयोगशाला और कला-कक्षा में रंगों के भेदभाव में कठिनाई होती थी। उन्होंने बताया, “कक्षा चार में मुझे लाल और हरे रंग की दृष्टि में कमी का पता चला। जब मुझे अपनी स्थिति का पता चला, तो मैंने महसूस किया कि कई छात्र इसी समस्या का सामना कर रहे होंगे और शायद उन्हें इसका पता भी नहीं होगा। इसलिए मैंने इसे ‘Aiding Colours’ नामक सामाजिक परियोजना के रूप में लिया।”
आहान ने 30 से अधिक स्कूलों में जाकर छात्रों का इशिहारा परीक्षण किया, और लगभग 120 छात्रों को रंग अंधता से संबंधित समस्याओं का सामना करते हुए पाया। उन्होंने कहा कि कई नौकरियों में जैसे कि एविएशन, रक्षा बल और रेलवे, रंग अंधता वाले उम्मीदवार पात्र नहीं होते।
आहान ने अपनी परियोजना में चित्रों को रंग अंध छात्रों के लिए बेहतर बनाने के लिए कम्प्यूटेशनल अध्ययन किया। शुरूआत उन्होंने अपने गृह नगर आनंद से की, और बाद में अदाणी इंटरनेशनल स्कूल में जाकर स्कूल की मदद से यह कार्य आगे बढ़ाया।
उनका मशीन-लर्निंग मॉडल 99.7% सटीकता के साथ काम करता है। इस नवाचार को हाल ही में Crest Gold Award (UK) से सम्मानित किया गया और इसे वैश्विक शैक्षिक मंचों पर सराहा गया।
आहान ने बताया कि नम्रता अदाणी, प्रमोटर, अदाणी इंटरनेशनल स्कूल, ने उन्हें लगातार समर्थन दिया और उनका उत्साह बढ़ाया। नम्रता अदाणी कहती हैं, “आहान जैसी कहानियाँ हमारे स्कूल के दृष्टिकोण को दर्शाती हैं, जो सिर्फ सफल छात्र नहीं बल्कि समाज में बदलाव लाने वाले नेता तैयार करना चाहते हैं। शिक्षा सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह संवेदनशील और जिम्मेदार नागरिक तैयार करे।”
आहान ने आगे कहा कि स्कूल के सहयोग से वह अब अपनी परियोजना को व्यक्तिगत प्रयास की बजाय स्कूल की पहल के रूप में चला पा रहे हैं। उन्होंने बताया, “स्कूल गतिविधियों के हिस्से के रूप में, मैंने अपने सहपाठियों की मदद से कैंप आयोजित किया, जिससे हमने 300 से अधिक छात्रों का परीक्षण किया। अगले पांच वर्षों में मेरा लक्ष्य इस परियोजना को पूरे गुजरात और भारत के स्कूलों तक पहुँचाना है। मैं यह भी चाहूंगा कि सरकार प्राथमिक स्वास्थ्य जांच और पाठ्यपुस्तकों में रंग अंध छात्रों के लिए अनुकूलन को अनिवार्य करे।”
आहान की यह पहल आनंद, गुजरात से शुरू हुई, जहाँ डॉ. शिवानी भट्ट चैरिटेबल फाउंडेशन के सहयोग से उन्होंने चार जिलों में रंग अंधता जांच शिविर आयोजित किए। 10,000 से अधिक छात्रों का परीक्षण हुआ और 131 छात्रों को पहली बार रंग अंधता का पता चला।
न केवल यह, आहान ने दो भाषाओं में जागरूकता पत्रक, समावेशी स्टेशनरी और शिक्षक गाइड्स भी तैयार किए, जिससे कक्षा में और अधिक संवेदनशीलता और समावेशिता लाई जा सके। उनका कार्य IIT-Delhi में आयोजित Indo-French Conference on AI and Healthcare में प्रदर्शित हुआ और International Journal of High School Research, New York में प्रकाशित होने वाला है।
आहान के लिए असली इनाम उन बच्चों की मुस्कान है, जो अब अपने अध्ययन में आसानी महसूस कर पा रहे हैं। वह कहते हैं, “अगर मेरे काम से एक भी बच्चा बेहतर समझ सके, तो मैं इसे सफलता मानता हूँ।”