Global Re-set: ग्लोबल इकोनॉमी में एक बड़े रीस्ट्रक्चरिंग यानी ‘ग्लोबल रीसेट’ का दौर शुरू हो चुका है और इस बदलाव के केंद्र में अब भारत की मौजूदगी लगातार मज़बूत होती जा रही है। एक ताज़ा रिपोर्ट में बड़ा दावा किया गया है कि भारत अगले कुछ वर्षों में 200 अरब डॉलर तक का विदेशी निवेश आकर्षित कर सकता है। यह न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ होगा, बल्कि दुनिया भर में भारत की छवि एक भरोसेमंद और स्थिर निवेश गंतव्य के रूप में और पुख्ता कर देगा।
भारत की पकड़ मजबूत
रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया की बड़ी कंपनियां अब चीन पर निर्भरता घटाकर विकल्प तलाश रही हैं, और भारत उन्हें सबसे सटीक और सुरक्षित विकल्प नजर आ रहा है। चाहे वो टेक्नोलॉजी हो, क्लीन एनर्जी, मैन्युफैक्चरिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर या डिजिटल फाइनेंस… हर क्षेत्र में भारत की पकड़ लगातार मजबूत होती जा रही है।
निवेश हब बनने की दहलीज़ पर खड़ा
2024 के आम चुनावों के बाद बनी स्थिर सरकार और लगातार बढ़ रही जीडीपी दर ने भारत को निवेशकों के लिए और भी आकर्षक बना दिया है। दुनिया की दिग्गज फाइनेंशियल संस्थाएं जैसे HSBC, Morgan Stanley और Goldman Sachs पहले ही यह साफ कर चुकी हैं कि भारत अब सिर्फ एक उभरती हुई इकॉनमी नहीं, बल्कि अगला बड़ा निवेश हब बनने की दहलीज़ पर खड़ा है।
निर्यात के मोर्चे पर बड़ी बढ़त
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले पांच सालों में भारत में होने वाला विदेशी निवेश मल्टी-स्पेस होगा, यानी केवल किसी एक सेक्टर में नहीं, बल्कि एक साथ कई क्षेत्रों में भारी फंडिंग देखी जाएगी। इस निवेश से भारत को नई नौकरियों, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और निर्यात के मोर्चे पर बड़ी बढ़त मिल सकती है।
निवेश-हितैषी नीतियां भारत
चीन की सख्त नीतियों और अनिश्चितताओं के कारण दुनिया की बड़ी कंपनियां अब ‘चाइना प्लस वन’ पॉलिसी पर काम कर रही हैं … यानी चीन के साथ किसी और विकल्प की तलाश। और उस विकल्प की रेस में भारत सबसे आगे है। राजनीतिक स्थिरता, युवा कार्यबल, डिजिटल विकास और निवेश-हितैषी नीतियां भारत को सबसे मजबूत दावेदार बना रही हैं।
अगर भारत इस अवसर को सही तरीके से भुना सका तो आने वाले सालों में यह सिर्फ निवेश की बात नहीं होगी, बल्कि भारत के वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनने की बुनियाद रखी जा चुकी होगी।