भारत सरकार की हाल ही में शुरू की गई इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग स्कीम (ECMS) से सेमीकंडक्टर घटकों में घरेलू मूल्यवर्धन दर को वर्तमान 3-5 प्रतिशत से बढ़ाकर 15-20 प्रतिशत तक पहुंचाने का अनुमान है। यह दावा HCL के सह-संस्थापक और EPIC फाउंडेशन के चेयरपर्सन अजय चौधरी ने किया। उनका कहना है कि आने वाले तीन से पांच वर्षों में जब कंपनियां नए प्लांट स्थापित करेंगी और अनुमोदन प्राप्त करेंगी, तब यह मूल्यवर्धन संभव हो सकेगा।
चौधरी ने बातचीत करते हुए बताया कि सेमीकंडक्टर चिप्स के डिज़ाइन में बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) का मालिकाना हक होना आवश्यक है, क्योंकि यह भारत के लिए एक अगला कदम हो सकता है।
माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स का अवसर
चौधरी ने बताया कि भारत ने अभी तक माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में ज्यादा काम नहीं किया है, जो कि सेंसर, पावर प्रोडक्ट्स, और MEMS (माइक्रो-इलेक्ट्रो-मेकैनिकल सिस्टम) जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को कवर करता है। हालांकि, कुछ रिसर्च एंड डेवलपमेंट (R&D) संस्थानों ने इस क्षेत्र में अच्छा काम किया है, लेकिन वे उत्पाद निर्माण में पीछे हैं।
ECMS की लॉन्चिंग
अप्रैल में सरकार ने ₹22,919 करोड़ की ECMS योजना की घोषणा की, जिसका उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट्स, डिस्प्ले और कैमरा मॉड्यूल्स, लिथियम-आयन बैटरी जैसे डिजिटल उत्पादों के निर्माण को बढ़ावा देना है। इस योजना के तहत बैटरी पैक, मोबाइल फोन, लैपटॉप जैसे उपकरणों के निर्माण के लिए जरूरी घटकों का उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन भी प्रदान किया जाएगा।
वर्तमान स्थिति
जुलाई तक, इस योजना के तहत सरकार को लगभग ₹7,500 करोड़ से ₹8,000 करोड़ के प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। ये प्रस्ताव लगभग 100 आवेदनकर्ताओं द्वारा भारतीय और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों से आए हैं।
वैश्विक सहयोग: EPIC फाउंडेशन ने फ्राउनहॉफ़र ग्रुप फॉर माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स के साथ एक रणनीतिक साझेदारी की है, जिससे भारतीय कंपनियों को वैश्विक कंपनियों के साथ सहयोग करने का अवसर मिलेगा, खासकर माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में।
आगे की रणनीति, भारत के लिए तीन मुख्य रास्ते हैं
मौजूदा इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को सेंसर बाजार में विस्तार करना।
हर उत्पाद में वर्टिकल इंटीग्रेशन पर ध्यान देना, जैसे कि ड्रोन के कई घटक जो अभी भारत में नहीं बनते।
सरकार और उद्योग को मिलकर उन उत्पादों की पहचान करनी होगी, जिन्हें अगले 2-3 वर्षों में विकसित किया जा सकता है, और उन उत्पादों की भी जो 5 वर्षों में तैयार होंगे।