Baka, Azerbaijan : संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप 29) का आयोजन बाका, अज़रबैजान में 24 नवंबर 2024 को संपन्न हुआ। सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य जलवायु वित्त के लिए एक नई सामूहिक लक्ष्य (NCQG) पर सहमति बनाना था, लेकिन इस सम्मेलन ने विश्व की अपेक्षाओं को निराश किया। यह सम्मेलन राजनीतिक नाटक के रूप में अधिक और ठोस कार्रवाई के रूप में कम नजर आया।

विकासशील देशों की चार प्रमुख मांगें
विकासशील देशों ने सम्मेलन में निम्नलिखित प्रमुख मांगें रखीं

  1. वित्तीय योगदान अनिवार्य किया जाए
    पेरिस समझौते के अनुच्छेद 9.1 के अनुसार, विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने चाहिए। लेकिन सम्मेलन के अंतिम दस्तावेज में इसे “अनिवार्य” न बनाकर केवल “चाहिए” (should) कहा गया, जो जिम्मेदारी से बचने का प्रयास दर्शाता है।
  2. स्पष्टता कि वित्त विकसित से विकासशील देशों की ओर ही जाए
    विकासशील देशों ने इस बात पर जोर दिया कि जलवायु वित्त सीधे विकसित देशों से आए। लेकिन अंतिम दस्तावेज़ में केवल “विकासशील देशों के लिए” कहा गया, “विकसित देशों से” नहीं। इससे जवाबदेही तय करना मुश्किल हो गया।
  3. सालाना $1.3 ट्रिलियन की मांग
    विकासशील देशों ने 2030 तक $1.3 ट्रिलियन वार्षिक जलवायु वित्त की मांग की थी। लेकिन समझौते में केवल $300 बिलियन सालाना 2035 तक देने की बात हुई। इसमें भी निजी और घरेलू स्रोत शामिल हैं, जिससे यह आंकड़ा मात्र “दिखावटी” बन गया।
  4. ऋण की जगह अनुदान आधारित वित्त:
    विकासशील देशों ने अनुदान आधारित वित्त की मांग की थी ताकि गरीब देशों पर ऋण का बोझ न बढ़े। लेकिन अंतिम दस्तावेज़ में अनुदान का केवल मामूली उल्लेख हुआ, जो इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं है।

क्या था न्यायोचित समाधान?
अगर विकसित देश ईमानदारी दिखाते, तो 2035 तक सालाना $500 बिलियन का लक्ष्य, जिसमें $100 बिलियन अनुदान शामिल हो, एक संतुलित और न्यायोचित समझौता हो सकता था। यह 1.5°C तापमान लक्ष्य के लिए पर्याप्त नहीं होता, लेकिन एक सकारात्मक शुरुआत जरूर होती।

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