UP Farmer Fertilizer Line. उत्तर प्रदेश का अन्नदाता आज बेबस और लाचार है। बस्ती जिले के परशुरामपुर थाना क्षेत्र के गोपीनाथपुर खाद वितरण केंद्र पर किसानों की भीड़, उनकी आंखों में दर्द और आंसू इस बात की गवाही दे रहे हैं कि सरकारी आंकड़े कितने खोखले हैं। जहां एक तरफ जिला प्रशासन और कृषि अधिकारी खाद की ‘पर्याप्त आपूर्ति’ का दावा कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर, खेत सूख रहे हैं और किसान दर-दर भटकने को मजबूर हैं।

गोपीनाथपुर खाद केंद्र पर सुबह 4 बजे से लाइन में खड़े एक किसान ने कहा फसल सूख रही है, खाद नहीं मिल रही। अगर इस बार भी फसल बर्बाद हो गई तो परिवार कैसे पालेँगे? किसान भूखे-प्यासे घंटों इंतज़ार कर रहे हैं, लेकिन जब नंबर आता है तो पता चलता है, खाद खत्म हो गई है।

तीन-तीन दिन से लाइन में हैं किसान, फिर भी नहीं मिल रही खाद

किसानों का कहना है कि तीन-तीन दिन से लाइन में खड़े हैं, लेकिन सिस्टम ही फेल है। सुबह से लेकर शाम तक बैठ जाते हैं, पर नंबर नहीं आता। फिर कहा जाता है कि खाद खत्म हो गई। किसानों की मानें तो समितियों पर ई-पॉस मशीन और स्टॉक रजिस्टर में भारी गड़बड़ी है। कुछ केंद्रों पर खाद ओवररेट में बेची जा रही है।

खुद BJP नेता ने खोली पोल – हो रही है कालाबाजारी

भाजपा के वरिष्ठ नेता और जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन राजेन्द्रनाथ तिवारी ने साफ आरोप लगाया कि खाद की ब्लैक मार्केटिंग हो रही है और इसमें विभागीय अधिकारी तक शामिल हैं। उन्होंने बताया कि दोगुनी रैक आने के बाद भी किसान रो रहे हैं, इसका मतलब है कि स्टॉक गायब किया जा रहा है। किसानों से ओवररेट वसूला जा रहा है और स्टॉक का रजिस्टर कहीं से मेल नहीं खा रहा।

कृषि विभाग का दावा – कोई कमी नहीं, किसान ही जिम्मेदार

इस पूरे मामले पर जिला कृषि अधिकारी बाबूराम मौर्या का कहना है कि बस्ती में खाद की कोई कमी नहीं है। उनके अनुसार, अब तक 41,000 मीट्रिक टन खाद का वितरण हो चुका है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 13,000 मीट्रिक टन अधिक है। उन्होंने खाद की किल्लत का ठीकरा किसानों पर ही फोड़ते हुए कहा कि इस बार गन्ने की अधिक खेती है, इसलिए डिमांड बढ़ी है। ओवररेट या कालाबाजारी की कोई शिकायत नहीं है।

सवाल वही – अगर खाद है तो किसान क्यों रो रहा है?

प्रशासन के दावों और किसानों की हालत में भारी विरोधाभास साफ दिखाई देता है। अगर सरकारी रिकॉर्ड में खाद की कोई कमी नहीं है, तो फिर क्यों सुबह 4 बजे से लाइन लगाकर बैठे किसान को दोपहर में खाली हाथ लौटना पड़ता है? सवाल यह भी है कि जिन किसानों की फसलें बर्बाद हो रही हैं, उन्हें मुआवज़ा मिलेगा या नहीं?

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