उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के अतरैला टोल प्लाजा पर एक बड़े घोटाले का खुलासा हुआ है, जिसमें ₹750 करोड़ की अवैध वसूली की बात सामने आई है। स्पेशल टास्क फोर्स (STF) ने इस मामले में छापेमारी कर एक बड़े नेक्सस का पर्दाफाश किया है। आरोप है कि NHAI (नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया) के कंप्यूटर सिस्टम में सॉफ्टवेयर को बदलकर टोल वसूली में धोखाधड़ी की जा रही थी। इस मामले में STF ने मिर्जापुर के अतरैला टोल से 3 आरोपियों को पकड़ा है। आलोक कुमार सिंह (जौनपुर), राजीव कुमार मिश्रा (प्रयागराज), मनीष मिश्रा (मध्यप्रदेश) को STF ने गिरफ्तार किया है।
जानकारी के अनुसार, यह घोटाला कई महीनों से चल रहा था, और हर दिन लाखों रुपये की अवैध वसूली की जा रही थी। छापेमारी के दौरान STF को कई अहम सबूत मिले, जिनसे यह साबित हुआ कि सॉफ्टवेयर के माध्यम से टोल वसूली में गड़बड़ी की जा रही थी। यह सॉफ्टवेयर विशेष रूप से टोल शुल्क के आंकड़ों को बदलने के लिए डिज़ाइन किया गया था।
घोटाले की प्रक्रिया:
आरोपी कैश काउंटर की वसूली में धांधली करते थे।
बिना फास्टैग वाले वाहनों से वसूला गया टैक्स NHAI के खाते में जमा नहीं होता।
टोल स्लिप सरकारी सॉफ्टवेयर जैसी, लेकिन अवैध वसूली के लिए बनाई गई।
घोटाले की रकम:
हर दिन 100 टोल प्लाजा पर ₹40-50 लाख का नुकसान।
5 साल में यह आंकड़ा ₹750 करोड़ तक।
NHAI की जिम्मेदारी:
NHAI के अधिकारियों ने अभी तक इस घोटाले को रोकने के लिए कोई सख्त कदम नहीं उठाया।
STF का मानना है कि टोल कर्मियों के साथ NHAI के नोडल अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध है।
NHAI ने 3 दिन में सभी टोल प्लाजा की रिपोर्ट मांगी है।
यह घटना राज्य में भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के मामलों को लेकर गंभीर सवाल खड़े करती है, और ऐसे मामलों में पारदर्शिता और निगरानी की आवश्यकता को उजागर करती है।
यह घोटाला टोल प्लाजा से जुड़ी अवैध गतिविधियों के खिलाफ एक चेतावनी है, और इसके बाद ऐसे मामलों की जांच और कड़ी निगरानी की आवश्यकता और बढ़ गई है।