वैज्ञानिकों के अनुसार अंटार्कटिका का एक विशाल ग्लेशियर, जिसे ‘डूम्सडे ग्लेशियर’ के नाम से भी जाना जाता है, अगले 200 से 900 सालों में पूरी तरह पिघल सकता है। इसे थ्वाइट ग्लेशियर के नाम से भी जाना जाता है और इसका आकार फ्लोरिडा राज्य जितना बड़ा है। यह धरती के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके पिघलने से समुद्र का जलस्तर बढ़ सकता है, जो तटीय इलाकों के लिए खतरनाक साबित होगा।
क्यों पिघल रहा है यह ग्लेशियर? :
इसका सबसे बड़ा कारण ग्लोबल वार्मिंग है। बढ़ते तापमान की वजह से बर्फ तेजी से पिघल रही है। इसके अलावा समुद्र का गर्म पानी भी इस ग्लेशियर को नीचे से पिघला रहा है। ग्लेशियर की संरचना में हो रहे बदलावों की वजह से इसके टूटने की दर और भी तेजी से बढ़ रही है।
क्यों है यह खतरा?:
अगर यह ग्लेशियर पूरी तरह पिघल गया तो वैश्विक समुद्र का जलस्तर कई मीटर तक बढ़ सकता है। इससे दुनिया के तटीय शहरों में बाढ़ आ सकती है और लाखों लोग अपना घर छोड़ने को मजबूर हो सकते हैं। इसके साथ ही मौसम में भी बड़े बदलाव हो सकते हैं, जिसका बुरा असर खेती-किसानी और जनजीवन पर पड़ेगा। कई द्वीप और तटीय क्षेत्र डूब सकते हैं, जिससे वन्यजीवों और मनुष्यों दोनों को भारी नुकसान हो सकता है।
ग्लोबल वार्मिंग को रोकना ज़रूरी है:
अंटार्कटिका के ग्लेशियरों को बचाने के लिए सबसे ज़रूरी है कि हम ग्लोबल वार्मिंग को कम करें। इसके लिए हमें कोयला और तेल जैसे जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल कम करना होगा और सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल बढ़ाना होगा। वैज्ञानिकों को इस पर और शोध करने की ज़रूरत है ताकि पिघलने की प्रक्रिया को धीमा किया जा सके।
वैज्ञानिक चेतावनी:
हाल ही में हुए एक शोध से पता चला है कि अगर वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है, तो अंटार्कटिका का बर्फीला हिस्सा तेज़ी से पिघलना शुरू हो जाएगा। यह धरती के लिए एक गंभीर समस्या बन सकती है और इसका असर सभी पर पड़ेगा।
हम क्या कर सकते हैं?:
इस समस्या से निपटने के लिए सभी देशों को मिलकर काम करना होगा। हमें अपनी आदतों में बदलाव लाना होगा और प्राकृतिक संसाधनों का यथासंभव संरक्षण करना होगा ताकि हमारी धरती और इसकी अनमोल विरासत सुरक्षित रह सके।