बिहार में इस बार चुनावी मुद्दे जंगलराज बनाम सुशासन बनकर सामने आए हैं, जो लगभग दो दशकों से राज्य की राजनीति का अहम हिस्सा रहा है। एनडीए के नेता, 2005 में लालू-राबड़ी के शासनकाल को याद दिला कर वोटरों को लुभा रहे हैं, वहीं नीतीश सरकार के नेतृत्व में कानून-व्यवस्था और विकास के क्षेत्र में किए गए कार्यों का दावा किया जा रहा है। इस बार भी एनडीए ने पुराने मुद्दों को उठाते हुए 2005 के शासनकाल को प्रमुख मुद्दा बनाया है।
बिहार में अपराध और एनडीए का पुराना मुद्दा
बिहार में अपराध की बढ़ती घटनाओं ने राज्य की छवि को प्रभावित किया है। एनडीए इस मुद्दे को फिर से उठा रहा है, जबकि महागठबंधन इसे लेकर अपनी रणनीति पर काम कर रहा है। तेजस्वी यादव और राहुल गांधी, बिहार के युवाओं को रोजगार और महिलाओं के लिए मासिक सहायता के वादों के जरिए प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, महागठबंधन ने अपराध के मुद्दे को पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं किया है और मोकामा हत्याकांड सहित कई आपराधिक घटनाओं का जिक्र करते हुए सुशासन के दावे को खोखला साबित करने की कोशिश की है।
तेजस्वी यादव ने एनसीआरबी के आंकड़ों का हवाला देते हुए यह बताया कि बिहार अपराध के मामले में शीर्ष पर है और वादा किया कि उनकी सरकार बनने पर, 26 नवंबर 2025 से 26 जनवरी 2026 के बीच सभी अपराधी और असामाजिक तत्व जेल की सलाखों के पीछे होंगे।
बिहार के वोटरों में बदलाव और रोजगार पर जोर
बिहार का मतदाता वर्ग अब पहले से कहीं अधिक जागरूक हो चुका है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में कुल 7 करोड़ 41 लाख 92 हजार मतदाता हैं, जिनमें 18 से 29 वर्ष के मतदाता 1 करोड़ 77 लाख हैं। यह युवा वर्ग महागठबंधन के शासन को नहीं देख पाया है, ऐसे में उनके लिए जंगलराज का नैरेटिव उतना प्रभावी नहीं हो सकता। लोकनीति-CSDS 2020 के सर्वे के मुताबिक, 2015 में जहां बेरोजगारी और नौकरी को सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा माना जाता था, वहीं 2020 में यह मुद्दा 20% मतदाताओं के लिए प्राथमिक बन चुका है।
सर्वेक्षण के अनुसार, 18 से 29 वर्ष के 37% युवाओं ने महागठबंधन को वोट दिया था, जबकि 36% ने NDA को चुना था। हालांकि महिलाओं के बीच NDA को अधिक समर्थन मिला था, जिसके कारण इस बार भी NDA ने महिला वोटरों को लुभाने के लिए जंगलराज के मुद्दे को प्रमुखता दी है।
बेरोजगारी और पलायन पर तेजस्वी और राहुल गांधी का हमला
तेजस्वी यादव बेरोजगारी, पलायन और स्थानीय नौकरियों की कमी को अपने चुनावी अभियान का मुख्य मुद्दा बना रहे हैं। वहीं राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार पर आरोप लगाया है कि बिहार की सरकार अब दिल्ली से नियंत्रित होती है और राज्य की समस्याओं को नजरअंदाज किया जा रहा है। वे महंगाई और असमानता जैसे राष्ट्रीय मुद्दों को भी बिहार के लोकल मुद्दों से जोड़कर चुनावी माहौल को गरमाने की कोशिश कर रहे हैं।
राहुल गांधी ने अपने भाषणों में पीएम मोदी पर हमला करते हुए कहा कि उनकी विदेश नीति और आंतरिक नीतियां कमजोर हैं, और बीजेपी केवल प्रधानमंत्री की अंतरराष्ट्रीय लोकप्रियता का प्रचार करती है।
क्या बिहार के मतदाता बदलेंगे अपनी प्राथमिकताएं?
अब यह देखना होगा कि बिहार के मतदाता किसके नैरेटिव और वादों पर यकीन करेंगे क्या वे एनडीए के सुशासन की बातों को स्वीकार करेंगे, या फिर महागठबंधन के रोजगार और समाजिक न्याय के वादों को अपना समर्थन देंगे। चुनावी जंग में अपराध, रोजगार, महिला सुरक्षा, और विकास जैसे मुद्दे निर्णायक साबित हो सकते हैं।















