Nepal political Crisis. नेपाल में राजनीतिक संकट ने नया मोड़ ले लिया है। प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने क्रांति के दबाव में इस्तीफा दे दिया है। प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन को आग के हवाले कर दिया और सरकारी इमारतों को जलाया। हालात इतने भयावह रहे कि वित्त मंत्री को सड़कों पर दौड़ा-दौड़ा कर पीटा गया, जिससे देश में डर और दहशत फैल गई।
सूत्रों के अनुसार, कई अन्य मंत्री भी अपने पद से इस्तीफा दे चुके हैं, जिससे महज दो दिनों के भीतर नेपाल की सरकार पूरी तरह बर्बाद हो गई। सोशल मीडिया पर पाबंदी और जनता की क्रांति ओली के लिए भारी साबित हुई। जनता ने स्पष्ट संदेश दिया कि अब वे अपने हक और सरकार के खिलाफ खड़े हैं। इस हिंसक प्रदर्शन में अब तक 22 लोगों की मौत हो चुकी है।
संसद भवन से उठते भारी धुएं और आग के दृश्य ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा। बिल्डिंग के भीतर कर्मचारी और सांसद भी मौजूद थे, लेकिन पुलिस और सुरक्षा बलों ने उन्हें सुरक्षित बाहर निकालने की कोशिश की। राजधानी काठमांडू के कई हिस्सों में तनावपूर्ण माहौल बना हुआ है, और प्रशासन स्थिति पर कड़ी निगरानी रख रहा है।
विश्लेषकों का कहना है कि नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता ने इस हिंसक घटनाक्रम को जन्म दिया है। प्रदर्शनकारी और जनता दोनों ही ने मिलकर यह क्रांति संभव की। सरकारी भवनों और सांसदों के खिलाफ हिंसा ने यह संदेश दिया कि जनता की नाराजगी अब और सहन नहीं की जाएगी।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस घटना पर चिंता व्यक्त की जा रही है। कई देशों ने नेपाल सरकार से तत्काल शांति और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बनाए रखने का आग्रह किया है।
नेपाल में यह घटना न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से भी चिंताजनक है। कई निवेशक और विदेशी कंपनियां इस अस्थिरता के कारण अपने निर्णय पर पुनर्विचार कर रही हैं।
इस संकट के बीच, देश में नए नेतृत्व और स्थिर सरकार की आवश्यकता अब पहले से कहीं अधिक महसूस की जा रही है। जनता की क्रांति ने साबित कर दिया कि लोकतंत्र में जनता की शक्ति ही सर्वोपरि है।
नेपाल में राजनीतिक उथल-पुथल और हिंसक घटनाओं की पूरी कहानी लगातार दुनिया के मीडिया और सोशल प्लेटफॉर्म पर लाइव अपडेट के साथ सामने आ रही है।