POSCO Act 2025: भारत में किशोरों के बीच बनते प्रेम संबंध और यौन सहमति को लेकर एक अहम सवाल लंबे समय से चर्चा में रहा है…. क्या 18 साल से कम उम्र में सहमति से बने शारीरिक संबंध कानूनी रूप से मान्य हैं?
इस सवाल का जवाब अब देश की सबसे बड़ी अदालत में केंद्र सरकार ने स्पष्ट रूप से दे दिया है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान सरकार ने कहा कि भारत में यौन सहमति की न्यूनतम उम्र 18 साल ही रहेगी और इसमें किसी प्रकार की ढील नहीं दी जा सकती।
क्या कहा सरकार ने?
केंद्र ने अदालत में कहा कि देश के मौजूदा कानून, खासकर POCSO एक्ट (Protection of Children from Sexual Offences Act) और भारतीय न्याय संहिता (BNS), नाबालिगों को यौन शोषण से बचाने के लिए बनाए गए हैं।
सरकार ने कहा कि अगर इस उम्र को कम किया गया तो इसका फायदा उन अपराधियों को मिल सकता है जो बच्चों की भावनात्मक निर्भरता का फायदा उठाकर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं।
नाबालिगों की सुरक्षा सर्वोपरि
सरकार का यह भी कहना है कि 18 साल से कम उम्र के बच्चों को विशेष सुरक्षा देने की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि अधिकतर यौन अपराध परिचितों, रिश्तेदारों या भरोसेमंद लोगों द्वारा किए जाते हैं। ऐसे में सहमति की उम्र घटाने से ऐसे अपराधों को बढ़ावा मिल सकता है।
किशोरों के मामलों में क्या है विकल्प?
हालांकि सरकार ने यह भी माना है कि 18 वर्ष के आसपास के दो किशोरों के बीच आपसी सहमति से संबंध के मामलों में कोर्ट “न्यायिक विवेक” का इस्तेमाल कर सकता है। इसे “Close-in-age exception” कहा जाता है, जिसमें अदालत परिस्थितियों के अनुसार निर्णय ले सकती है।
कानून का दुरुपयोग हो सकता है
सरकार ने कोर्ट को चेताया कि अगर इस नियम में छूट दी गई, तो बलात्कारी और यौन शोषक यह दावा करके बच सकते हैं कि “यह संबंध सहमति से बना था”, जिससे POCSO जैसे कानून की मंशा कमजोर हो जाएगी।
सहमति की उम्र का ऐतिहासिक सफर
- 1860: सहमति की उम्र 10 साल
- 1891: बढ़कर 12 साल
- 1925-1929: बढ़कर 14 साल
- 1940: बढ़कर 16 साल
- 1978 से अब तक: 18 साल तय
सरकार ने कहा कि इस बदलाव का मकसद बच्चों की शारीरिक और मानसिक सुरक्षा सुनिश्चित करना था और यह निर्णय सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और कानूनी सोच पर आधारित था।
भारत में 18 साल से कम उम्र के बच्चों के बीच, चाहे सहमति हो या न हो, शारीरिक संबंध कानूनन अपराध की श्रेणी में आते हैं। हालांकि, दो किशोरों के बीच सहमति से बने संबंधों को लेकर कोर्ट कुछ हद तक लचीलापन दिखा सकती है, लेकिन कानून की मूल भावना बच्चों की सुरक्षा और शोषण से रक्षा पर केंद्रित है।