Keshav Prasad Maurya: उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों ‘कच्चा आम’ सबसे पका हुआ मुद्दा बन गया है। बात सिर्फ आम के स्वाद तक नहीं रही, अब ये राजनीतिक कटाक्ष और जवाबी हमलों की जुबानी जंग बन चुका है। शुरुआत हुई एक फोटो से, लेकिन बात जा पहुँची 2012 की सियासी गलियों तक।
क्या है पूरा मामला?
4 जुलाई को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में तीन दिवसीय आम महोत्सव का उद्घाटन किया। इस दौरान सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हुई, जिसमें मुख्यमंत्री हरे रंग का आम थामे नज़र आए। वहीं से उठा विवाद का पहला ताज़ा झोंका।
अखिलेश यादव, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष, ने इस तस्वीर पर तंज कसते हुए एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा, “कच्चे आम कह रहे, पकाओ मत!” ये एक सीधा तंज था — जिसे मुख्यमंत्री योगी पर निशाना माना गया। पोस्ट वायरल हुई और उसी के साथ सोशल मीडिया पर #कच्चा_आम ट्रेंड करने लगा।
कच्चे आम की राजनीति पुरानी है!
अब इस ‘फल’ वाले तंज पर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने बिना नाम लिए अखिलेश यादव को जवाब दिया। उन्होंने ट्वीट किया, नेताजी ने 2012 में एक कच्चे आम को पका हुआ आम समझने की भूल की थी, जिसे लेकर वह जीवन पर्यंत पछताते रहे।” इस बयान के ज़रिए उन्होंने 2012 में मुलायम सिंह यादव द्वारा अखिलेश को सीएम बनाए जाने पर कटाक्ष किया, यह इशारा था कि उस समय अखिलेश ‘कच्चे’ थे, और उस फैसले का सियासी नुकसान पार्टी को लंबे समय तक भुगतना पड़ा।
राजनीति में फल से फायर तक!
अब ये ‘कच्चा आम’ सिर्फ फलों की प्रदर्शनी का हिस्सा नहीं, बल्कि सीएम और पूर्व सीएम के बीच कटाक्ष और पलटवार का प्रतीक बन गया है। जहां एक ओर अखिलेश अपनी सोशल मीडिया लाइन से युवाओं के बीच चर्चा बटोरते हैं, वहीं केशव मौर्य सियासी इतिहास को सामने रखकर जवाब देने में पीछे नहीं हटते।
उत्तर प्रदेश में चुनावी मौसम हो या ना हो, राजनीतिक ‘आम’ हमेशा पके ही रहते हैं। इस बार आम सचमुच आम नहीं रहा — कभी हरा, कभी मीठा और अब तीखा भी!