लखनऊ। गरीब हूँ गद्दार नहीं, पंचायत 4 के इस एक डायलॉग ने फुलेरा गांव के बिनोद को सोशल मीडिया का सितारा बना दिया है। जिस किरदार को पहले बस एक एक्स्ट्रा या साइलेंट कैरेक्टर माना जाता था, उसी ने अब अपनी दमदार मौजूदगी और भावनात्मक संवादों से दर्शकों का दिल जीत लिया है। पर क्या आप जानते हैं कि ये बिनोद असल जिंदगी में कौन हैं? उनका नाम, उनकी जर्नी, उनका संघर्ष और वो पल जब उन्होंने कांस फिल्म फेस्टिवल में खड़े होकर दुनियाभर की तालियां बटोरीं?
कौन हैं पंचायत के बिनोद?
फुलेरा के बिनोद का असली नाम अशोक पाठक है। भले ही वह बिहार से ताल्लुक रखते हैं, लेकिन उनका जन्म हरियाणा के फरीदाबाद में हुआ। बाद में उनका परिवार हिसार आ गया, जहां उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। अशोक के पिता बिहार से हरियाणा रोजगार की तलाश में आए थे, जैसा कि उस दौर के अधिकतर बिहारवासियों के साथ होता था। अशोक कहते हैं कि उन पर बिहार और हरियाणा दोनों का सांस्कृतिक असर पड़ा है।
पढ़ाई में कमजोर, लेकिन अभिनय में अव्वल
अशोक की शैक्षणिक यात्रा बहुत प्रेरणादायक नहीं रही। 12वीं में महज 40% अंक आए थे और उन्हें लगा था कि अब उनका कोई भविष्य नहीं। लेकिन लखनऊ के एक कॉलेज में दाखिला मिलना उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट बन गया। यहीं उन्हें पहली बार थिएटर का पता चला और उन्होंने मंच से जुड़ाव महसूस किया। अभिनय के प्रति उनका झुकाव इतना बढ़ा कि कॉलेज में तीन साल लगातार बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड जीता।
संघर्ष के दिन: कॉटन बेचकर गुजारा
अशोक बताते हैं कि 9वीं कक्षा में पढ़ाई के दौरान उन्होंने कॉटन बेचना शुरू किया, जिससे उन्हें 100 रुपये मिलते थे। ये उनकी जीविका और आत्मनिर्भरता की शुरुआत थी। लखनऊ में थिएटर करते हुए ही उन्हें पहला शो शूद्र: द राइजिंग मिला और यहीं से उनकी पेशेवर अभिनय यात्रा शुरू हुई।
पहला चेक 2500 और फिर एक झटके में 1.4 लाख
पहली बार उन्हें किसी एड शूट के लिए ₹2500 का पेमेंट मिला था। पर आश्चर्य तब हुआ जब अगले ही एड के लिए ₹1.4 लाख का चेक मिला। अशोक कहते हैं कि वो उनके करियर का पहला बड़ा मोड़ था और यहीं से उन्होंने तय किया कि अब सिर्फ एक्टिंग ही उनका रास्ता है।
कांस फिल्म फेस्टिवल तक का सफर
अशोक पाठक के करियर का सबसे गौरवपूर्ण क्षण तब आया जब उनकी फिल्म ‘सिस्टर मिडनाइट’ को कांस फिल्म फेस्टिवल में प्रीमियर के लिए चुना गया। जब मैं कांस पहुंचा, तो यकीन ही नहीं हो रहा था। लग रहा था जैसे सपना देख रहा हूं। फिल्म को 10 मिनट से ज्यादा का स्टैंडिंग ओवेशन मिला था, आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इस फिल्म में उनके अपोजिट राधिका आप्टे थीं और इसे ब्रिटिश फिल्म अकादमी ने प्रोड्यूस किया था। डायरेक्टर करण कांधारी ने अशोक पर भरोसा जताया और उन्होंने उस पर खरा उतरकर दिखाया।
पंचायत से पहचान, पर करियर की शुरुआत 2012 से
हालांकि लोगों ने उन्हें पंचायत में बिनोद के रूप में नोटिस किया, लेकिन अशोक का हिंदी सिनेमा में डेब्यू 2012 में बिट्टू बिनोद’ नामक फिल्म से हुआ था। इसके बाद उन्होंने शंघाई, अ डेथ इन द गंज, सात उच्चके जैसी फिल्मों और वेब सीरीज में भी काम किया।
आज का बिनोद: एक्सप्रेशन से डायलॉग तक सब पर भारी
पंचायत 4 के नए सीज़न में जब सचिव जी और रिंकी की प्रेम कहानी और चुनावी घमासान लोगों का ध्यान खींच रहे थे, तब बिनोद ने अपने दमदार डायलॉग और बेजोड़ एक्सप्रेशन से सबका दिल जीत लिया।