Uttar Pradesh: बस्ती जिले के कुदरहा ब्लॉक में स्थित गांव भरवालिया उर्फ टिकुईया, आज एक ऐसे दर्द भरे अध्याय की तरह है, जो हर रोज़ अपनी अनदेखी और उपेक्षा को महसूस करता है। 1997 में जब इस गांव को संतकबीरनगर जिले में शामिल किया गया, तब से लेकर आज तक, यहां के लोग सरकारी योजनाओं से वंचित हैं। न केवल ये लोग बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं, बल्कि चुनावी प्रक्रिया और सरकारी नौकरी के अवसरों से भी वंचित हो गए हैं। यह गांव, जो कभी बस्ती जिले का हिस्सा था, आज दो जिलों के बीच खड़ा है, और इसका भविष्य सुलझे बिना अंधेरे में है। इस निराशाजनक स्थिति का समाधान न केवल गांववासियों की उम्मीदों को जगाएगा, बल्कि सरकारी सिस्टम में सुधार की आवश्यकता को भी उजागर करेगा।
मामला क्या है?
गांव भरवालिया उर्फ टिकुईया के मामले में सबसे बड़ा विवाद यह है कि यह गांव पहले बस्ती जिले का हिस्सा था, लेकिन 5 सितंबर 1997 को जब संतकबीरनगर जिला अस्तित्व में आया, तो अधिकारियों की गलती से इस गांव को संतकबीरनगर में शामिल कर लिया गया। हालांकि, गांव की अधिकांश आबादी बस्ती जिले से जुड़ी हुई है और वे यहां के निवासी माने जाते हैं। इसके चलते, गांव के लोग बस्ती जिले की सरकारी योजनाओं और सुविधाओं से वंचित रह गए हैं।
इसके अलावा, गांव के लोग बस्ती जिले में लोकसभा और विधानसभा चुनावों में मतदान करते हैं, लेकिन संतकबीरनगर के त्रिस्तरीय चुनावों में भाग नहीं ले पाते, जिससे उनके लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है।
युवाओं के लिए बड़ी समस्या
सीमा विवाद के कारण, इस गांव के युवा सरकारी नौकरी के लिए दोनों जिलों में आवेदन नहीं कर पाते हैं, क्योंकि दोनों जगहों पर उनका नामांकन नहीं होता। यह उनके भविष्य के लिए एक बड़ा संकट बन चुका है।
गांव में बुनियादी सुविधाओं की कमी और सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित रहना, गांववासियों की मुश्किलें और बढ़ा रहा है। अगर जल्द ही इस मुद्दे का समाधान नहीं हुआ, तो गांव के लोग आने वाले समय में और अधिक परेशानियों का सामना कर सकते हैं।