नई दिल्ली। भारत की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री आने वाले वर्षों में तेज़ी से बढ़ने वाली है। फाइनेंशियल सर्विस फर्म UBS की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत का सेमीकंडक्टर एंड-डिमांड राजस्व 2025 में 54 अरब डॉलर से बढ़कर 2030 तक 108 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। यह वृद्धि 15% की कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR) के साथ दर्ज होगी।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2030 तक भारत में लोकलाइज़ेशन के अवसरों से भी लगभग 13 अरब डॉलर का राजस्व उत्पन्न होने की संभावना है। UBS के मुताबिक, यह ग्रोथ भारत की मजबूत जनसंख्या संरचना, इलेक्ट्रॉनिक्स की बढ़ती मांग, एडवांस सेमीकंडक्टर को अपना रहे एंटरप्राइज और सरकार की अनुकूल नीतियों के कारण संभव हो रही है।

हालांकि भारत अभी वैश्विक स्तर पर सेमीकंडक्टर उत्पादन में सीमित भूमिका निभा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत वैश्विक वेफर क्षमता का मात्र 0.1%, सालाना उपकरण निवेश का 1% और सेमीकंडक्टर एंड-डिमांड का 6.5% हिस्सा रखता है।

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि मौजूदा टैरिफ अनिश्चितताओं के चलते कई टेक कंपनियां अपनी सप्लाई चेन को चीन के बाहर स्थानांतरित करने पर विचार कर रही हैं। कुछ कंपनियां पहले ही “चाइना प्लस वन” रणनीति के तहत भारत जैसे अन्य देशों में असेंबली यूनिट स्थापित कर रही हैं।

भारत का प्रमुख लाभ इसकी विशाल सॉफ्टवेयर और सर्विसेज़ इंडस्ट्री में है, जबकि चीन का वर्चस्व मैन्युफैक्चरिंग में बना हुआ है। सेमीकंडक्टर क्षेत्र में भी भारत के पास एक विशिष्ट लाभ है—विश्व के लगभग 20% चिप डिजाइनर भारत में मल्टीनेशनल कंपनियों के लिए कार्यरत हैं।

रिपोर्ट में अमेरिका और चीन को टॉप सेमीकंडक्टर एंड-मार्केट बताया गया है, जबकि भारत 6.5% हिस्सेदारी के साथ एक मजबूत उभरता हुआ बाज़ार बना हुआ है।

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