लखनऊ। एक वक्त था जब 2000 के गुलाबी नोट देश की अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक चर्चा में थे, नोटबंदी के बाद इन्हें नए भारत की नयी पहचान कहा गया। लेकिन आज वही गुलाबी नोट ना बाजार में दिख रहे हैं, ना बैंकों में, और ना ही आम जनता की जेब में। सवाल उठता है,आख़िर 2000 के नोट हज़म कौन कर गया?
RBI की नीति: पीछे हटने की मजबूरी या रणनीति?
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने मई 2023 में 2000 के नोटों को चलन से बाहर करने का ऐलान किया था। लोगों को इन्हें बदलने का मौका भी दिया गया, लेकिन इसके बाद RBI ने चुप्पी साध ली।अब 2025 में, RBI के अनुसार ₹3.56 लाख करोड़ में से ₹3.54 लाख करोड़ मूल्य के नोट लौट चुके हैं, यानी 99.86% नोट वापस! तो फिर सवाल ये है अगर लगभग सारे नोट लौट आए, तो बाजार में नकदी में कोई असर क्यों नहीं पड़ा? और जो बचे, वो किसके पास हैं?
कौन हज़म कर गया गुलाबी नोट?
बाजार और अर्थव्यवस्था के जानकारों के अनुसार, जो 2000 के नोट अब तक वापस नहीं आए ,वे या तो कालाधन हैं, या फिर भ्रष्टाचार, हवाला कारोबार, और चुनावी खर्चों में खप चुके हैं। 2000 का नोट बड़ा मूल्य और छोटा आकार है, इसलिए छिपाना आसान, खर्च करना आसान और ट्रैक करना मुश्किल, एक पूर्व वित्त सचिव ने नाम न बताने की शर्त पर कहा।
सरकार क्यों भटकी?
सरकार की ओर से कोई स्पष्ट स्पष्टीकरण नहीं आया कि 2000 के नोट को क्यों हटाया गया,अगर वो वैध थे, तो वापस क्यों मंगवाए? और अगर अवैध थे, तो चलन में क्यों लाए गए? मोदी सरकार ने इसे ‘नकली नोटों की रोकथाम’ और ‘कैशलेस इकोनॉमी’ को बढ़ावा देने के कदम के रूप में पेश किया। लेकिन नोटबंदी की तरह इस फैसले पर भी पारदर्शिता की कमी साफ़ दिखी।
कहां गया जनता का भरोसा?
छोटे व्यापारियों, किसानों और ग्रामीण भारत के लिए 2000 का नोट असुविधाजनक था। लेकिन अब अचानक गायब होने से लोगों के मन में फिर वही सवाल उठे हैं जो 2016 में उठे थे। सरकार हमारी जेब में क्या डालेगी और कब निकाल लेगी?
अब बाजार में क्या चल रहा है?
आज के समय में बाजारों में सिर्फ और सिर्फ 500 के नोट सबसे ज्यादा चलन में हैं। जबकि डिजिटल पेमेंट का चलन बढ़ा है, ग्रामीण और असंगठित क्षेत्रों में नकद की अब भी भारी मांग है। सरकार और RBI को चाहिए कि वो जनता को स्पष्टता दे कि आगे किस मूल्यवर्ग के नोट चलन में रहेंगे और किसका भविष्य संदिग्ध है।