इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपहरण, जबरन शादी और नाबालिग बीवी से शारीरिक संबंध बनाने के मामले में सुनवाई करते हुए दोषी इस्लाम को बरी कर दिया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि पीड़िता की शादी 16 साल की उम्र में मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत की गई थी, जो कानूनी रूप से वैध थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि घटना के समय पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध अपराध नहीं थे।
सिंगल बेंच के जस्टिस अनिल कुमार ने निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए इस्लाम को बरी कर दिया। निचली अदालत ने इस्लाम को आईपीसी की धारा 363, 366 और 376 के तहत सात साल की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने पीड़िता की गवाही को महत्वपूर्ण मानते हुए कहा कि आरोपों से मुक्त होने का कारण यह था कि लड़की ने स्पष्ट रूप से बताया था कि वह अपनी मर्जी से इस्लाम के साथ गई थी।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के 1973 के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि ले जाने और साथ जाने में कानूनी अंतर होता है। इसके अलावा, मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक 15 साल की उम्र में विवाह को वैध माना जाता है, इसलिए इस मामले में शादी वैध है।