जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर और डासना शिवशक्ति धाम के महंत यति नरसिंहानंद के बयान के बाद पथराव हुआ। ये पहली बार नहीं था जब ऐसा हुआ हो यति नरसिंहानंद ने बयान पहली बार नहीं दिया। ऐसे बयान वो पहले भी दे चुके हैं। लेकिन उनके इस बयान ने चिंगारी का काम किया। सहारनपुर के शेखपुरा कदीम में युवा सड़कों पर आए। पुलिस पर पथराव हुआ। लेकिन कोई भी जिम्मेदार घटनास्थल पर नहीं पहुंचा। चौकी पर तैनात पुलिसकर्मी सैंकड़ों की भीड़ के पथराव का सामना करते दिखाई दिए। छिपते और भागते हुए दिखाई दिए। 24 घंटे के बाद जिले के जिम्मेदार घटनास्थल पर पहुंचे और ग्रामीणों के साथ मीटिंग की।

बवाल के बाद तनावपूर्व शांति

बहराल तनाव थोड़ा कम होता दिख रहा है। लेकिन एक भभक अभी भी बनी हुई है। शेखपुरा कदीम में रविवार को बवाल हुआ। देर रात को करीब 13 युवकों को अरेस्ट किया। डीएम मनीष बंसल और एसएसपी रोहित सिंह सजवाण पुलिस फोर्स के साथ सोमवार को पहुंचे। पहले चौकी में ग्रामीणों के साथ मीटिंग की। शांति समिति बनाने की बात हुई। लेकिन अधिकारी बाद में गांव में पहुंचे। जहां के चौक की सभी दुकानें बंद मिली। हैरानी की बात है कि जिले के जिम्मेदार रविवार को कहां थे? घटनास्थल पर क्यों नहीं पहुंचे। एसपी ,सीओ, इंस्पेक्टर और चौकी इंचार्ज के भरोसे पर ही पूरे बवाल को छोड़ दिया गया।

पथराव की बात क्यों छिपाई गई

गांव के रेती चौक पर हजारों की संख्या में मुस्लिम समाज के लोग इकट्‌ठा हुए। जिन्हें चौकी पर महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद के विरोध में ज्ञापन देने जाना था। पुलिस ने पहले इसे हल्के में लिया। कुछ ही पुलिसकर्मी थे। इंस्पेक्टर को लगा भीड़ ज्यादा हो गई है तो वो गांव में ज्ञापन लेने के लिए पहुंच गए। शांतिपूर्ण तरीके से ज्ञापन लिया गया।

उपद्रवियों के पत्थरों से छिपती दिखी पुलिस

जब उपद्रवी पत्थरबाजी कर रहे थे, तो पुलिस पेड़ के पीछे छिप गई। जब भी उनकी ओर भागती हुई आई तो फिर पुलिस वहां से भी भागने लगी। चौकी की पुलिस ने ही मामला सुलझा लिया, उसके बाद पुलिस फोर्स पहुंची। हालांकि फोर्स ने उन्हें उपद्रवियों को खदेड़ने का काम किया। ग्रामीणों का कहना है कि यदि पुलिस व्यवस्था दुरुस्त होती और पुलिस बल तैनात होता तो ऐसी घटना नहीं होती।

लोकल इंटेलिजेंस की रही कमी

समाचार और वाट्सऐप ग्रुप से अपडेट होनी वाली लोकल इंटेलिजेंस पूरी तरह से फेल दिखाई दी। सवाल ये है कि जब पश्चिमी यूपी में महामंडलेश्वर के बयान पर आफत आई हुई थी तो सहारनपुर का इंटेलिजेंस ने क्यों नजर नहीं बनाई? क्या पुलिस या फिर अधिकारियों को सूचित नहीं कराया गया? यदि कराया गया तो फिर इतनी बड़ी संख्या में भीड़ कहां से आई? जिसने फिजा को ही बदलने का काम किया। बड़े अफसर मौके पर क्यों नहीं पहुंचे? एक दिन बाद बड़े अफसर घटनास्थल पर क्यों पहुंचे? क्या पुराने 2013, 2017, 2022 में जो घटा उसकी नए अफसरों को जानकारी नहीं थी।

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