वाराणसी। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लगातार मिट्टी के कारीगरों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। बिजली से चलने वाले चाक और बिजली बिलों में मिली सब्सिडी के साथ सरकार के द्वारा लगातार कुम्हारों के द्वारा बने सामग्रियों की प्रचार प्रसार ने कुम्हारों के जीवन में एक बार फिर रंग लाना शुरू कर दिया है।
मौका दीपावली का है, जब घर -घर दीप जलाए जाने है। इन दिनों वाराणसी के बाजार में चाइनीज झालरों के मुकाबले मिट्टी के दीयों की डिमांड काफी है। बड़ी संख्या में लोग लाइट और झालरों को छोड़ कुम्हारों के द्वारा कड़ी मेहनत से बनाए जाने वाले मिट्टी के दीप को पसंद कर रहे। बाजार में डिमांड बढ़ने से बनारस के कई गांवों से विलुप्त की कगार पर पहुंच रहे मिट्टी के समाग्री मानने वाली कारगारी में चार चांद लग गया है।
लोकल फॉर वोकल नारा हो रहा साकार, दीपावली पर दीप के साथ भगवान गणेश और लक्ष्मी की प्रतिमा की डिमांड
सरकार द्वारा लगातार लोकल फॉर वोकल के नारे के साथ जागरूकता अभियान ने कुम्हारों को संजीवनी दे दिया है। दीपावली, छठ और देवदीपावली से पहले कुम्हारों को बाजार से काफ़ी ऑर्डर मिल रहे है। फुलवरिया के कुम्हार हीरालाल प्रजापति बताते है, कि वह अपने पुरखों से चली आ रही कारीगरी को जीवंत रखते आ रहे है और इसी से इनके परिवार का भरण पोषण होता है। कुछ साल पहले बाजार में चाइनीज झालर और लाइटों ने इनके इस कला को काफी नुकसान पहुंचाया। जिसके कारण इनके बेटे ने इस कारीगरी को छोड़ मजदूरी के साथ प्राइवेट काम करने लगे। विगत कुछ सालों से सरकार ने मिट्टी की कारीगरी को बढ़वा दिया और हांथ से चलने वाले चाक की जगह उन्हें निःशुल्क बिजली से चलने वाले चाक मिले। सरकार द्वारा लोकल फॉर वोकल नारे के बाद से मिट्टी से बने सामग्रियों को बाजार में काफी पसन्द किया जाने लगा है। एक बार फिर उनका बेटा प्राइवेट जॉब छोड़ आपने परंपरागत कारीगरी में लौट आया है। वही मिट्टी के दीप के साथ दीपावली में मिट्टी से बने भगवान गणेश और लक्ष्मी की प्रतिमा भी अब लोगो को खूब भा रहे है। यही वजह है, कि बाजारों से कारीगरों को मिट्टी वाले भगवान गणेश और लक्ष्मी की प्रतिमा की डिमांड पहले से कई गुना ज्यादा मिल रहे है।
मिट्टी की उपलब्धता बन रही है कुम्हारों के लिए दिक्कत , सरकार से कुम्हारों ने की डिमांड
मिट्टी की कला से जुड़े कुम्हार बताते है, कि विगत सालों की अपेक्षा अब उनके द्वारा बनाए गए मिट्टी की सामग्री हाथों हाथ बाजार में मुंह मांगी कीमत पर बिक जाती है। फुलवरिया कुम्हार बस्ती में मिट्टी की सामग्री बनाने वाली सावित्री देवी के अनुसार मिट्टी के बर्तन और अन्य सामग्रियों की डिमांड बढ़ने से उनका काम और आमदनी दोनो बढ़ गया है, लेकिन इसके साथ उन जैसे कुम्हारों के सामने मिट्टी ना मिलने की बड़ी समस्या भी उत्पन्न हो रही है। कुम्हार बस्ती के सुशील कुमार शर्मा ने बताया कि सरकार द्वारा खनन पर रोक लगाए जाने की वजह से मिट्टी के दाम में काफी उछाल आया है। जो मिट्टी कुम्हारों को एक हजार रूपए टैक्टर की ट्राली मिलती थी, उसकी कीमत अब 4 से 5 हजार रुपए हो गई है। ऐसे में बाजार से मिट्टी के कारीगरों को ऑर्डर तो मिल रहे है, लेकिन मिट्टी की उपलब्धता ना होने से वह ऑर्डर को पूरा नहीं कर पा रहे है। ऐसे में कुम्हारों की इस समस्या की तरफ सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिए। जिससे कुम्हार समाज के लोगों को सस्ते दाम पर मिट्टी उपलब्ध हो सके।