बीते दशकों में भारत की राजनीति एक विचित्र असहजता से जूझती रही—एक ऐसा राष्ट्र जो हिंदू परंपरा की गहराई में रचा-बसा है, परंतु जिसकी राजनीति इस पहचान को सार्वजनिक रूप से स्वीकारने से कतराती रही। सेक्युलरिज़्म को इस तरह प्रस्तुत किया गया मानो बहुसंख्यक समाज की जड़ें स्वीकार करना ही विघटन का कारण हो। लेकिन यह दृष्टिकोण भारत के असली आत्मविश्वास को दबाता रहा।

नरेंद्र मोदी ने इस मानसिकता को बदल डाला। उन्होंने केवल राजनीतिक रवैया नहीं बदला, बल्कि भारत की आत्मा को पुनः जीवंत किया। मोदी 3.0 का आगाज़ भले ही सीमित संसदीय बहुमत के साथ हुआ हो, पर यह नेतृत्व और भी अधिक स्पष्ट, निडर और आत्मविश्वासी दिख रहा है — एक ऐसा नेतृत्व जो हिंदू पहचान को न सिर्फ स्वीकारता है, बल्कि उसे राष्ट्रनिर्माण की केंद्रीय धारा में लाने को कृतसंकल्प है।

राम मंदिर निर्माण केवल एक धार्मिक आस्था की पुनर्स्थापना नहीं है, यह उस ऐतिहासिक अन्याय का समाधान है जिसे लंबे समय तक राजनीतिक सुविधा की चुप्पी ने ढका रहा। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद जिस गरिमा और एकता के साथ मंदिर निर्माण हुआ, वह भारत की आत्मचेतना का प्रतीक है।

इसी प्रकार, धारा 370 का हटाया जाना न सिर्फ संवैधानिक समानता की दिशा में बड़ा कदम था, बल्कि भारत की अखंडता और सांस्कृतिक एकता की पुनः स्थापना थी। जम्मू-कश्मीर आज भारत के मुख्य विकास मॉडल का हिस्सा बन चुका है — डिजिटल कनेक्टिविटी, रोजगार योजनाएं और बुनियादी ढांचे में ऐतिहासिक सुधार देखने को मिल रहे हैं।

मोदी का संस्कृतिक नेतृत्व केवल देश तक सीमित नहीं है। वे जब विश्व नेताओं को भगवद गीता भेंट करते हैं या अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को वैश्विक पटल पर लाते हैं, तो वह भारत की ज्ञान परंपरा को गर्व से प्रस्तुत करते हैं। यह आत्मविश्वास भारत को एक सांस्कृतिक महाशक्ति के रूप में उभार रहा है।

देश के भीतर भी मोदी सरकार का ध्यान हिंदू समाज में समरसता लाने पर है। जातीय खाइयों को पाटने के लिए ‘सामाजिक समरसता’ जैसे आह्वान, और समावेशी विकास योजनाएं एक अधिक एकीकृत और सशक्त बहुसंख्यक पहचान गढ़ रही हैं। मोदी का यह दृष्टिकोण बहुसंख्यकवाद नहीं, बल्कि सांस्कृतिक आत्म-स्वीकृति है।

मोदी के आलोचक भले इसे “मेज़ॉरिटेरियनिज़्म” कहें, लेकिन वास्तव में यह सभ्यतागत आत्म-गौरव की पुनःस्थापना है, जिसे आधुनिक विकास के साथ जोड़ा गया है। आज भारत में आधुनिकता और परंपरा विरोधाभासी नहीं, बल्कि पूरक हैं — जहाँ हाईवे और डिजिटल भुगतान के साथ श्लोक और संस्कार भी सम्मानित हैं।

मोदी 3.0 उस पुरानी धारणा को तोड़ता है कि भारत को अपनी पहचान से पीछे हटना होगा यदि उसे वैश्विक शक्ति बनना है। उनके नेतृत्व में भारत अपने संस्कृतिक मूल्यों के साथ आधुनिक विश्व में अपना स्थान सुनिश्चित कर रहा है — गर्व से, निडर होकर।

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