वाराणसी के भेलूपुर इलाके में हुए सामूहिक हत्याकांड ने पूरे शहर को दहशत में डाल दिया है। 4-5 नवंबर 2024 की रात एक ही परिवार के पांच लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी गई। इस खौफनाक हत्याकांड के पीछे बदले की आग थी, जो 27 साल से सुलग रही थी।

मुख्य आरोपी विशाल गुप्ता और उसके भाई प्रशांत ने अपने माता-पिता और दादा की 1997 में हुई हत्या का बदला लेने के लिए अपने चाचा, चाची और तीन चचेरे भाई-बहनों की हत्या कर दी।

27 साल पुराना बदला कैसे बना खूनी खेल?

  • 1997 में माता-पिता और दादा की हत्या:

विशाल जब 5 साल का था, तब उसके माता-पिता और दादा की हत्या कर दी गई थी। उसे विश्वास था कि इसके पीछे उसके चाचा का हाथ था।

  • बचपन से ही बदले की आग:

विशाल और प्रशांत ने सालों तक इस गुस्से को अपने अंदर दबाए रखा और बदला लेने की योजना बनाई।

  • शातिर प्लानिंग:

हत्या से पहले दोनों भाइयों ने बिहार से अवैध हथियार खरीदे, नए सिम कार्ड लिए और वारदात के बाद फरारी की पूरी रणनीति तैयार की।

पुलिस के लिए पहेली क्यों बना ये हत्याकांड?

कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं: हत्याकांड आधी रात को अंजाम दिया गया, जिससे किसी ने कुछ नहीं देखा।

सुराग के बिना फरार: आरोपी वारदात के बाद मुगलसराय से पटना, फिर कोलकाता और मुंबई भागता रहा।

फर्जी पहचान का इस्तेमाल: विशाल ने नकली आईडी और अलग-अलग सिम कार्ड का इस्तेमाल किया, जिससे पुलिस उसे ट्रेस नहीं कर सकी।

फिल्मी स्टाइल में फरारी: गिरफ्तारी से बचने के लिए विशाल ने होटलों में रुकने के बजाय रेलवे स्टेशनों पर सोना शुरू कर दिया, जिससे उसकी लोकेशन ट्रैक न हो सके।

पुलिस गिरफ्तारी के बाद जब विशाल से पूछताछ कर रही थी, तब उसने चौंकाने वाले खुलासे किए:

“अगर हमने चाचा को नहीं मारा होता, तो एक दिन वो हमें मार देते। ये सिर्फ बदला नहीं था, बल्कि हमारी सुरक्षा भी थी। पुलिस को चौंकाने वाली बात यह लगी कि विशाल और प्रशांत ने दो साल पहले ही इस हत्याकांड की प्लानिंग शुरू कर दी थी।”

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27 साल पुरानी दुश्मनी ने पूरे परिवार की बलि ले ली। पुलिस 3 महीने तक आरोपी को पकड़ने में नाकाम रही। हत्यारे फर्जी पहचान और लोकेशन बदलकर बचते रहे। पूछताछ में ऐसे खुलासे हुए, जिसने पुलिस को भी चौंका दिया।

अब आगे क्या?

विशाल और प्रशांत को गिरफ्तार कर लिया गया है। उन पर हत्या और आपराधिक साजिश का मामला दर्ज हुआ है। कोर्ट में सुनवाई के बाद उन्हें आजीवन कारावास या फांसी की सजा हो सकती है।

क्या बदले की आग इंसाफ का रास्ता हो सकती है?

यह हत्याकांड सिर्फ खून का बदला खून नहीं था, बल्कि एक पीढ़ीगत दुश्मनी की कहानी थी। यह सवाल भी खड़ा करता है—क्या न्याय के नाम पर हत्या को सही ठहराया जा सकता है?

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