एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में लोकपाल ने 10 अगस्त 2024 को जारी दूसरे हिंडनबर्ग रिपोर्ट के आधार पर SEBI की पूर्व चेयरपर्सन माधबी पुरी Buch के खिलाफ दाखिल तीन शिकायतों को खारिज कर दिया। इन शिकायतों में भ्रष्टाचार, हितों का टकराव और क्विड प्रो क्वो सौदों के आरोप लगाए गए थे, जो SEBI में उनके कार्यकाल और अदानी समूह समेत कुछ अन्य जांचित संस्थाओं से जुड़े थे।
प्रमुख आरोप और लोकपाल के निष्कर्ष-
निवेश का टकराव
आरोप था कि माधबी पुरी Buch और उनके पति ने अदाणी समूह से जुड़े एक फंड में निवेश किया था, जो SEBI जांच के तहत था, और इस निवेश को सही तरीके से सार्वजनिक नहीं किया गया था। हालांकि, लोकपाल ने पाया कि ये निवेश सही तरीके से घोषित किए गए थे और इसमें कोई भ्रष्टाचार नहीं था।
क्विड प्रो क्वो सौदे
शिकायतों में यह आरोप भी था कि माधबी पुरी Buch की कंपनियों ने महिंद्रा, ब्लैकस्टोन और वोकहार्ट जैसी कंपनियों से कंसल्टेंसी फीस ली, जो SEBI द्वारा जांचित थीं। लोकपाल ने इसे वैध कंसल्टेंसी समझौतों के रूप में स्वीकार किया और भ्रष्टाचार या अनधिकृत लाभ की कोई बात नहीं पाई।
ESOPs से अनुचित लाभ
एक और आरोप था कि माधबी पुरी Buch ने ICICI बैंक के ESOPs को अधिकतम लाभ के लिए बेचा, जब SEBI ICICI के खिलाफ मामले पर काम कर रहा था। जांच में इस मामले में कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई।
दस्तावेजों का छुपाना और संपादन
यह आरोप था कि माधबी पुरी Buch ने अदानी स्टॉक मैनिपुलेशन की जांच कर रही सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एक्सपर्ट कमेटी से महत्वपूर्ण दस्तावेजों को छुपाया। लोकपाल ने इस आरोप को भी नकारा।
अनुचित रिकसाल
हालांकि माधबी पुरी Buch ने कुछ मामलों से खुद को अलग किया था, लेकिन यह आरोप था कि फिर भी उन्होंने SEBI में निर्णयों पर प्रभाव डाला। फिर से, इस आरोप को भी बिना सबूत के खारिज कर दिया गया।
लोकपाल का अंतिम फैसला-
लोकपाल ने यह निर्णय लिया कि शिकायतों के पीछे कोई ठोस आधार नहीं है और यह आरोप पूरी तरह से बेबुनियाद, परेशान करने वाले और राजनीतिक रूप से प्रेरित थे। लोकपाल ने कहा कि ये शिकायतें केवल धारणाओं और अनुमान पर आधारित थीं और इनका कोई तथ्यात्मक समर्थन नहीं था।
अदानी समूह की बेदागी-
लोकपाल ने यह भी पुष्टि की कि किसी भी सक्षम प्राधिकरण द्वारा अदानी समूह की कंपनियों द्वारा कोई गड़बड़ी या मैनिपुलेशन नहीं पाया गया है, चाहे वह SEBI हो, सुप्रीम कोर्ट हो या लोकपाल हो। जांच में यह पाया गया कि माधबी पुरी Buch और उनके पति केवल निष्क्रिय निवेशक थे और उनका अदानी समूह के शेयरों से कोई संबंध नहीं था।
हिंडनबर्ग रिपोर्ट को खारिज किया-
लोकपाल ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट को पूरी तरह से अस्वीकृत किया और इसे एक अप्रामाणिक और पक्षपाती दस्तावेज बताया, जिसे किसी कार्रवाई की शुरुआत के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। यह रिपोर्ट एक प्रसिद्ध शॉर्ट-सेलर द्वारा लिखी गई थी और लोकपाल ने इसे राजनीतिक रूप से प्रेरित और आधारहीन आरोपों का हिस्सा माना।
मुख्य निष्कर्ष-
SEBI की निष्पक्षता का समर्थन-SEBI की कार्रवाई और जांच, विशेषकर अदानी समूह से संबंधित, को सुप्रीम कोर्ट और लोकपाल द्वारा मंजूरी मिली।
कानूनी प्रक्रिया और न्याय का समर्थन-लोकपाल का आदेश मीडिया ट्रायल्स, विदेशी अटकलों और बिना सत्यापित आरोपों के खिलाफ एक मजबूत समर्थन है।
भारत के कॉर्पोरेट गवर्नेंस को मजबूती-इस निर्णय ने यह स्पष्ट किया कि भारत के पूंजी बाजार में मजबूत और निष्पक्ष गवर्नेंस है और SEBI जैसे नियामक संस्थानों की अखंडता को स्वीकार किया गया है।