सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में लिंग निर्धारण के आरोप में एक डॉक्टर के खिलाफ मामला रद्द कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि तलाशी अवैध तरीके से की गई है, तो उससे प्राप्त सबूत अमान्य माने जाएंगे।

लिंग जांच गैरकानूनी

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फ़ैसले में कहा है कि लिंग जांच करने वाले क्लिनिक या अस्पताल में तलाशी और जब्ती का अभियान गर्भधारण पूर्व एवं प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 (पीसीपीएनडीटी अधिनियम) की धारा 30 के तहत सभी तीन सदस्यों द्वारा सामूहिक रूप से किया जाना चाहिए. इस अधिनियम के तहत, गर्भावस्था के दौरान बच्चे के लिंग की जांच कराना गैरकानूनी है.

पांच साल तक की जेल

इस कानून के तहत, लिंग चयन के लिए भ्रूण की जांच कराने पर तीन साल तक की जेल और 10 हज़ार रुपये तक का जुर्माना हो सकता है. अगर कोई व्यक्ति दोबारा ऐसा अपराध करता है, तो उसे पांच साल तक की जेल और 50 हज़ार रुपये तक का जुर्माना हो सकता है. इस अधिनियम के तहत, लिंग चयन के लिए भ्रूण की जांच करने वाले केंद्रों का पंजीयन रद्द किया जा सकता है. इसके अलावा, लिंग चयन के लिए भ्रूण की जांच से जुड़े विज्ञापन देना भी अपराध है.

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