नई दिल्ली। केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री द्वारा 24 जुलाई 2025 को राष्ट्रीय सहकारिता नीति (NCP) 2025 को राष्ट्र के समर्पित किया गया। यह नीति प्रधानमंत्री के ‘सहकार से समृद्धि’ के मंत्र को साकार करने के लिए एक समग्र, यथार्थपरक, आधुनिक एवं समावेशी ढांचा प्रस्तुत करती है। देश में 8.5 लाख से अधिक सहकारी संस्थाएं ग्राम स्तर से लेकर बड़े स्तर तक सदस्य-संचालित समूहों के माध्यम से आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभा रही हैं, विशेषकर कारीगरों, किसानों तथा सूक्ष्म एवं लघु उद्यमियों के लिए।

सहकारिता के माध्यम से समावेशी और सतत विकास

यह नीति सहकारिता के मूल सिद्धांतों—स्वैच्छिक भागीदारी, लोकतांत्रिक निर्णय, सदस्य आर्थिक सहभागिता और पारदर्शिता—को मजबूती से स्थापित करती है। सहकारी संस्थाओं को आधुनिक तकनीक और व्यावसायिक प्रबंधन के जरिए विश्वस्तरीय प्रतिस्पर्धात्मक व्यवसायिक इकाई बनाने पर विशेष जोर दिया गया है। साथ ही, नीति में महिला, युवा, वंचित वर्ग, कारीगर एवं श्रमिकों की भागीदारी बढ़ाने के लिए विविध कार्यक्रमों और कानूनी सुधारों का प्रस्ताव रखा गया है।

सहकारिता क्षेत्र में सुधार और भविष्य की दिशा

राष्ट्रीय सहकारिता नीति में राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के सहयोग से सहकारी कानूनों की समीक्षा व सुधार की आवश्यकता पर बल दिया गया है ताकि पारदर्शिता, स्वायत्तता और अच्छे शासन को बढ़ावा मिले। नीति के तहत ऊर्जा, जैव ईंधन, डिजिटल प्लेटफॉर्म, कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, वित्तीय तकनीक जैसे नए क्षेत्रों में सहकारी संस्थाओं का विस्तार कर आर्थिक समृद्धि सुनिश्चित की जाएगी।

सभी हितधारकों की भागीदारी से विकसित होगी सहकारी नीति

नीति को सफल बनाने के लिए हितधारकों की लगातार परामर्श और सहयोग को आवश्यक माना गया है। सही क्रियान्वयन से यह नीति भारत के सहकारी क्षेत्र को अधिक प्रतिस्पर्धात्मक, तकनीकी-सक्षम, और स्थायी विकास के इंजन के रूप में स्थापित करेगी तथा अमृत काल (2025-2047) में देश के सकल घरेलू उत्पाद में महत्वपूर्ण योगदान देगी।

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