Ram Rahim Parole 2025: क्या भारतीय जेलों की सलाखों से कुछ विशेष लोगों के लिए रास्ते अलग बनते हैं? जब आम कैदी पैरोल के लिए लंबी कागजी लड़ाई लड़ता है, तब कुछ धार्मिक नेताओं को रक्षाबंधन और जन्मदिन जैसे निजी मौकों पर भी पैरोल मिल जाती है। गुरमीत राम रहीम जिस पर यौन शोषण के आरोप दर्ज हैं.. वो एक बार फिर जेल से बाहर आ गया हैं और इस बार 40 दिन की लंबी पैरोल पर! लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो ये हैं कि एक यौन अपराधी को बार बार पैरोल मिल कैसे जा रही? आइए जानते हैं पूरा मामला…..

क्या है ताज़ा मामला?

डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को हरियाणा सरकार ने 40 दिन की पैरोल दी है। वो 5 अगस्त 2025 को रोहतक की सुनारिया जेल से सिरसा डेरा के लिए रवाना हुआ। बताया जा रहा है कि यह पैरोल उसे रक्षाबंधन और उसके जन्मदिन के मद्देनज़र दी गई है।

पहले भी मिल चुकी है पैरोल और फरलो

हालांकि, ये कोई नई बात नहीं है। राम रहीम बार-बार जेल से बाहर आता रहा हैं। अप्रैल 2025 में 21 दिन की फरलो मिली थी…डेरा सच्चा सौदा के स्थापना दिवस के आस-पास। इसके बाद फरवरी 2025 में दिल्ली नगर निगम चुनावों से ठीक पहले 30 दिन की पैरोल दी गई थी। यह लगातार तीसरी बार है जब त्योहार, धार्मिक अवसर या राजनीतिक माहौल के दौरान उसे जेल से बाहर आने का मौका मिला है।

राम रहीम आखिर किस जुर्म में सजा काट रहे हैं?

बता दें कि, 2017 में सीबीआई कोर्ट, पंचकूला ने राम रहीम को दो साध्वियों के साथ यौन शोषण के मामले में दोषी करार दिया था। उसे 10-10 साल की दो अलग-अलग सजाएं सुनाई गई थीं (कुल 20 साल), साथ ही ₹30 लाख 20 हजार का जुर्माना भी लगाया गया। इस मामले में घटना 1999 की थी, लेकिन पीड़िताओं के बयान 2005 में दर्ज हुए यानी 6 साल बाद। पीड़िताओं ने आरोप लगाया कि डेरा के भीतर उनका जबरन यौन शोषण किया गया, और आवाज उठाने पर दबाव डाला गया।

सीबीआई की जांच और अदालत का फैसला

वही कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राम रहीम ने अपने पद का दुरुपयोग किया, और आस्था के नाम पर महिलाओं के साथ अपराध किया। फैसले के दिन पंचकूला में भारी हिंसा हुई, जिसमें कई लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए थे।

क्या यह ‘पैरोल नीति’ सबके लिए समान है?

राम रहीम को बार-बार मिलने वाली पैरोल को लेकर कानूनी और सामाजिक हलकों में तीखी बहस जारी है..क्या हर कैदी को ऐसी राहत मिलती है? क्या यह किसी तरह की राजनीतिक नज़दीकियों या धार्मिक प्रभाव का परिणाम है? जेल नियमों के तहत क्या बार-बार पैरोल देना न्यायोचित है?

पीड़िताएं न्याय की उम्मीद में..

राम रहीम जैसे सजायाफ्ता कैदी का बार-बार जेल से बाहर आना उस सिस्टम पर सवाल खड़े करता है, जो आम लोगों के लिए सख्त और प्रभावशाली लोगों के लिए लचीला हो जाता है। जहां एक तरफ पीड़िताएं न्याय की उम्मीद में वर्षों इंतज़ार करती रहीं, वहीं सजायाफ्ता व्यक्ति बार-बार पैरोल का “लाभ” उठा रहा है… कभी त्योहार के नाम पर, कभी धार्मिक आयोजन के नाम पर।

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