नोएडा की सड़कें बारिश का पानी तेजी से सोख लेती हैं और शहर लगभग सामान्य बना रहता है। वहीं, गुरुग्राम थोड़ी सी तेज बारिश में ही घुटनों तक पानी में डूब जाता है और ट्रैफिक घंटों के लिए ठप हो जाता है।
यह फर्क अचानक नहीं है, बल्कि शहरी योजना, इन्फ्रास्ट्रक्चर और गवर्नेंस के बिल्कुल अलग मॉडल का नतीजा है।
1. बेहतर ड्रेनेज इन्फ्रास्ट्रक्चर
नोएडा में करीब 87 किलोमीटर लंबी स्टॉर्म वॉटर ड्रेन्स बनाई गई हैं, जो भारी बारिश का पानी तुरंत निकाल देती हैं। इसके मुकाबले गुरुग्राम में ड्रेनेज की लंबाई 40 किलोमीटर से भी कम है। यही वजह है कि थोड़ी बारिश में भी गुरुग्राम की सड़कें तालाब जैसी हो जाती हैं।
2. प्लांड अर्बन डिज़ाइन और शुरुआती निगरानी
नोएडा का विकास 1970 के दशक के आखिर से ही नोएडा अथॉरिटी की देखरेख में हुआ। यहां नियम था कि सड़कें, सीवरेज और ड्रेनेज जैसी बुनियादी सुविधाएं पहले बनें, फिर बिल्डिंग का निर्माण शुरू हो। गुरुग्राम में 2007 तक कोई नगर निगम ही नहीं था और 2017 से पहले कोई डेवलपमेंट अथॉरिटी भी नहीं। नतीजा यह हुआ कि प्राइवेट बिल्डर्स ने बिना किसी समन्वय के शहर खड़ा कर दिया, जिससे बुनियादी सुविधाएं बिखरी-बिखरी रह गईं।
3. प्राकृतिक जलधाराओं की स्थिति
नोएडा यमुना के पुराने बाढ़क्षेत्र में बसा है, जहां की मिट्टी पानी सोखने वाली है और प्राकृतिक नाले अब भी काम करते हैं। गुरुग्राम में घाटा झील, बादशाहपुर झील और खांसा तालाब जैसे पारंपरिक जल स्रोत पाट दिए गए या उन पर निर्माण कर दिया गया। इससे पानी की प्राकृतिक निकासी रुक गई और शहर कटोरे जैसा बन गया।
4. हरित क्षेत्र और टिकाऊ प्रैक्टिस
नोएडा की योजना में हरे-भरे बेल्ट और खुले मैदान शामिल किए गए। यहां ड्रेनेज सिस्टम को कवर तो किया गया है लेकिन वेंटिलेशन छोड़कर ताकि जाम न हो। गुरुग्राम में तेजी से कंक्रीट बिछा दिया गया और हरियाली गायब होती गई। नतीजा—पानी जमीन में जाने के बजाय सड़कों पर जमा हो जाता है।
5. सक्रिय गवर्नेंस और विशेषज्ञ साझेदारी
नोएडा अथॉरिटी ने आईआईटी रुड़की जैसे संस्थानों से मिलकर ड्रेनेज नेटवर्क को और बेहतर बनाने के कदम उठाए हैं। वहीं गुरुग्राम का रवैया ज्यादातर रिएक्टिव है—पंप लगाना, इमरजेंसी घोषित करना, लेकिन मूल समस्या को ठीक करने की दिशा में बड़े कदम नहीं उठाए गए।
कौन जीता, कौन हारा?
नोएडा का अनुभव बताता है कि योजना बद्ध शहरीकरण और मजबूत गवर्नेंस किसी भी शहर को मॉनसून जैसी चुनौतियों से बचा सकता है। गुरुग्राम, जिसे कभी “मिलेनियम सिटी” कहा जाता था, आज बदइंतजामी और अनियंत्रित विकास की कीमत चुका रहा है।