उत्तर प्रदेश के मऊ सदर विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव की चर्चाएं बढ़ गई हैं। यह सीट हाल ही में सुभासपा नेता और मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी की विधायकी रद्द होने के बाद खाली हुई है। 1996 से लेकर 2022 तक इस सीट पर अंसारी परिवार का वर्चस्व बना हुआ था, और इसके बाद से मऊ सदर सीट पर किसी भी राजनीतिक दल को कामयाबी नहीं मिली।
अंसारी परिवार का दबदबा
मऊ सदर सीट पर मुख्तार अंसारी और उनके परिवार का राजनीतिक प्रभाव बहुत मजबूत रहा है। अंसारी परिवार ने इस सीट पर लगातार जीत दर्ज की है, और यही कारण है कि भाजपा के लिए यह सीट कभी भी जीतने का सपना बनी रही। इस सीट पर मुस्लिम मतदाता की संख्या करीब 1.70 लाख है, जो चुनाव के परिणाम पर अहम भूमिका निभाते हैं।
मुख्तार अंसारी ने इस सीट से पांच बार चुनाव जीते। साल 1996 में उन्होंने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद 2002 और 2007 में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीतकर इस सीट पर अपना दबदबा बनाए रखा। 2012 में उन्होंने कौमी एकता दल से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की, जबकि 2017 में उन्होंने बसपा से चुनाव जीतकर यह सीट अपने नाम की।
अब्बास अंसारी की विधायकी रद्द
2022 में अब्बास अंसारी ने सपा-सुभासपा गठबंधन से चुनाव लड़ा और पहली बार विधायक बने, लेकिन मुख्तार अंसारी के निधन के बाद उनकी विधायकी रद्द हो गई। अब इस सीट पर उपचुनाव की संभावना है, जो राजनीतिक दलों के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है।
बीजेपी का संघर्ष
मऊ सदर सीट पर भारतीय जनता पार्टी कभी भी सफल नहीं हो पाई। 1991 में जब उत्तर प्रदेश में राम लहर की लहर थी, तो भाजपा ने मुख्तार अब्बास नकवी को टिकट दिया था। इस चुनाव में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन वे केवल 133 वोटों से सीपीआई के हाथों हार गए। 1993 में भाजपा ने नकवी पर फिर से भरोसा किया, लेकिन इस बार भी वे दस हजार वोटों के अंतर से हार गए।
बीजेपी और गठबंधन का संघर्ष
2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने सुभासपा के साथ गठबंधन किया और मऊ सदर सीट पर इस गठबंधन को चुनावी मैदान में उतारा। हालांकि, बीजेपी की प्रचंड लहर के बावजूद यह सीट भाजपा के हाथ नहीं लगी।
आने वाले उपचुनाव में क्या होगा?
अब जब मऊ सदर सीट पर उपचुनाव की तैयारी है, राजनीतिक दलों के लिए यह सीट जीतने का एक और अवसर हो सकता है। अंसारी परिवार का प्रभाव अभी भी मजबूत है, लेकिन राजनीतिक समीकरण और मतदाता के रुझान के चलते यह सीट किसी अन्य दल के लिए भी चुनौतीपूर्ण हो सकती है। भाजपा, सपा, सुभासपा और अन्य दल इस सीट को अपने पक्ष में करने के लिए पूरी ताकत लगाएंगे।