भारत के आर्थिक विकास के संदर्भ में हालिया आंकड़े एक नई दिशा का संकेत देते हैं। मंत्रालय द्वारा जारी किए गए हाउसहोल्ड कंजंपशन एक्सपेंडिचर सर्वे (एचसीईएस) 2022-23 और 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार, देश ने गरीबी और असमानता को पहले से कहीं अधिक कम कर दिया है, जो अब तक के सबसे महत्वपूर्ण संकेतक हैं।
इन सर्वेक्षणों के आंकड़े इस बात को स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि पिछले 12 वर्षों में गरीबी दर में 20 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है, जिससे भारत में गरीबी की दर अब 9.4 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है, जो 2011-12 में 29.5 प्रतिशत थी। यह विशेष रूप से ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में गरीबी में गिरावट के रूप में एक बड़े बदलाव को दर्शाता है।
क्या कारण है इस कमी का?
- जीडीपी विकास: पिछले दशक में मजबूत जीडीपी वृद्धि, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, ने आय स्तर को बेहतर किया है। कृषि उत्पादन, MNREGA और केंद्र सरकार के हस्तांतरण ने खरीद क्षमता को बढ़ाया।
- सामाजिक कल्याण योजनाएं: प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (PMGKAY), पीएम आवास योजना और स्वच्छ भारत अभियान जैसी योजनाओं ने गरीबों को सुरक्षा प्रदान की है और उनके जीवन स्तर को सुधारने में मदद की है।
- डिजिटल और वित्तीय समावेशन: डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और वित्तीय समावेशन ने कल्याण योजनाओं को अधिक प्रभावी बनाने में मदद की है, जिससे गरीब परिवारों को असल लाभ हुआ है।
- सुधारी हुई लक्षित योजनाएं: आधार और JAM (जन धन, आधार, मोबाइल) योजना के माध्यम से सरकार ने सब्सिडी वितरण को बेहतर किया है।
ग्रामीण भारत: विकास का आश्चर्यजनक इंजन
यहां सबसे प्रेरणादायक बदलाव ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिला है। 2022-23 में ग्रामीण उपभोग खर्च (MPCE) 2011-12 से 164% बढ़कर ₹3,773 हो गया है। यह आंकड़ा 2023-24 में ₹4,122 तक पहुंच गया है। इसके मुकाबले, शहरी MPCE ₹6,996 हो गया, जो 146% की वृद्धि दर्शाता है।
असमानता में कमी
भारत में असमानता को मापने वाला Gini कोएफिसिएंट भी गिरा है। 2011-12 में यह 0.339 था, जो 2023-24 में घटकर 0.283 हो गया। इस गिरावट का मुख्य कारण यह है कि गरीबों का जीवन स्तर बेहतर हुआ है, और आय का वितरण अधिक समान हुआ है।
राज्य स्तर पर असमानताएं
हालांकि, राष्ट्रीय स्तर पर तस्वीर सकारात्मक दिख रही है, राज्य स्तर पर स्थिति में असमानताएं बनी हुई हैं। केरल, पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु जैसे राज्य अब भी राष्ट्रीय औसत से बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। वहीं, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे पिछड़े राज्यों में भी सुधार देखने को मिला है, लेकिन राष्ट्रीय औसत से इन राज्यों का अंतर बरकरार है।
नीति संकेत और भविष्य की दिशा
यह सर्वेक्षण यह भी संकेत देता है कि देश को अपनी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) की गणना को फिर से देखना होगा। साथ ही, शिक्षा और स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है, क्योंकि जैसे-जैसे लोग आर्थिक सीढ़ी चढ़ते हैं, उनके लिए उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं महत्वपूर्ण हो जाएंगी।
भारत का आर्थिक विकास अब और अधिक समावेशी बनता जा रहा है। गरीब अब केवल जीवित नहीं रह रहे, बल्कि वे समृद्ध हो रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था अब पिछड़ी नहीं, बल्कि एक प्रमुख विकास इंजन बन गई है।