हाल ही में “संघर्षविराम” शब्द सुर्खियों में रहा है, और कुछ आलोचक भारत-पाकिस्तान संघर्षविराम को “अमेरिका द्वारा मध्यस्थ” बता रहे हैं और इसे हमारी संप्रभुता के लिए खतरा करार दे रहे हैं। हालांकि, अमेरिका ने अपनी स्थिति बदल दी है। उनका रुख तात्कालिक राजनीतिक अवसरवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा की सीमित समझ को दर्शाता है, जो शांति के आर्थिक पहलुओं की अनदेखी करता है। भारत के निर्णय बाहरी दबावों से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय हित से प्रेरित होते हैं। 1970 के दशक के शीत युद्ध काल के विपरीत, आज भारत आत्मनिर्भर है, जो घरेलू क्षमताओं का उपयोग करते हुए वैश्विक स्तर पर सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है। रणनीतिक धैर्य हमारे संस्थागत परिपक्वता और आर्थिक ताकत से उपजता है।
ठहराव में शक्ति
कहाँ पर, भारत की शांति के पक्ष में निर्णय लेना कोई आत्मसमर्पण नहीं है, बल्कि यह एक बहुत ही सोच-समझ कर लिया गया कदम है। भारत के पास एक विशाल कार्यबल है, जिसमें 550 मिलियन से अधिक युवा हैं, जो पाकिस्तान की पूरी जनसंख्या से दोगुना है। यह कार्यबल भारत को विशाल विकास की दिशा में प्रेरित करता है। इसके साथ-साथ भारत ने अपनी वैश्विक साझेदारियों को बढ़ाया है, जिससे यह साफ है कि भारत ने बहुत कुछ बनाया है और अब बहुत कुछ बचाने के लिए भी खड़ा है। संघर्षविराम का मतलब यह नहीं कि भारत अपनी आतंकवाद विरोधी नीति से पीछे हट रहा है। यह सिर्फ एक अस्थायी शांति व्यवस्था है, लेकिन आतंकवाद और उसके प्रायोजकों के खिलाफ भारत की नीतियाँ अडिग रहेंगी।
आर्थिक दृष्टिकोण से शांति के लाभ
आजकल के संदर्भ में, एक लम्बे समय तक चलने वाले संघर्ष का अवसर लागत पहले की तुलना में कहीं अधिक है। हर साल शांति भारत की क्षमता को बढ़ाती है। शांति अविरल पूंजी निर्माण, नवाचार और बुनियादी ढाँचा निर्माण का रास्ता खोलती है। भारत की जीडीपी 4.19 ट्रिलियन डॉलर है और इसे 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की उम्मीद है। यही शांति भारत को अपनी गति को बनाए रखने और भविष्य में भी स्थिरता और विकास की ओर अग्रसर होने में मदद करती है।
भारत का दृष्टिकोण
भारत के पास लगभग 620 बिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा भंडार है, जो पाकिस्तान के केवल 15 बिलियन डॉलर के मुकाबले कहीं अधिक है। भारत के व्यापार क्षेत्र में वैश्विक स्थिति बहुत मजबूत हो रही है, जहां पाकिस्तान अभी भी कृषि और वस्त्र उद्योग पर निर्भर है। भारत वैश्विक स्तर पर कई व्यापार समझौतों में सक्रिय रूप से भागीदार है और एक मजबूत निर्यात क्षेत्र का निर्माण कर रहा है, जबकि पाकिस्तान को अपनी आर्थिक वृद्धि को जारी रखने में संघर्ष करना पड़ रहा है।
भारत की स्थिति
भारत का रक्षा क्षेत्र अब पूरी तरह से आत्मनिर्भर है, और यह साझेदारी देशों के साथ मिलकर अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी जैसे GCAP और S-500 मिसाइल प्रणालियाँ विकसित करने में सक्रिय रूप से शामिल हो रहा है। साथ ही भारत की ऊर्जा सुरक्षा में भी सुधार हुआ है। भारत अब तीसरा सबसे बड़ा पवन और सौर ऊर्जा उत्पादक है, जिससे वैश्विक तेल संकटों से उसकी निर्भरता घटती जा रही है।
भारत की रणनीतिक धैर्यता
भारत का संघर्षविराम के प्रति दृष्टिकोण प्रतिकूल नहीं है, बल्कि यह भविष्य के लिए एक दृढ़ और सुनियोजित कदम है। यह संकेत है कि भारत अपनी संप्रभुता, आर्थिक प्रगति और तकनीकी नेतृत्व को सबसे पहले रखता है। संघर्षविराम किसी प्रकार का समझौता नहीं, बल्कि सुरक्षा, विकास और एक उज्जवल भविष्य के प्रति प्रतिबद्धता है।