अब ‘बीम किल्स’ से होगा वार: डीआरडीओ ने Kurnool रेंज में दिखाया लेजर-DEW Mark-II(A) का दम

भारत ने 30-किलोवॉट लेजर-आधारित डायरेक्टेड एनर्जी वेपन (DEW) का सफल परीक्षण कर दुनिया के चुनिंदा देशों जैसे अमेरिका, रूस, चीन, इज़राइल और ब्रिटेन की श्रेणी में जगह बना ली है। यह सिस्टम दुश्मन के ड्रोन, मिसाइल और सेंसर को 3.5 किलोमीटर की दूरी से नष्ट करने में सक्षम है।

आधुनिक युद्धों के लिए किफायती समाधान

डीआरडीओ के डायरेक्टर जनरल डॉ. बी. के. दास ने कहा, “यह सिस्टम महंगे मिसाइल सिस्टम की तुलना में बहुत किफायती और पुनः उपयोगी है।” लेज़र-DEW सिस्टम से अब ‘बीम किल्स’ संभव हो गए हैं जो लंबे युद्धों में सस्ता और असरदार विकल्प साबित हो सकता है।

स्वदेशी तकनीक से बनेगा भविष्य का हथियार

पहले केवल 2 और 10 किलोवॉट के लेज़र सिस्टम का उपयोग होता था, जिनकी सीमा 1–2 किमी तक थी। लेकिन Mark-II(A) सिस्टम ने इसे बढ़ाकर 3.5 किमी कर दिया है। ड्रोन स्वार्म, निगरानी कैमरा और जमीनी सेंसरों को अंधा करने की क्षमता इस सिस्टम को और भी खास बनाती है।

जल्द आएंगे 50–100 किलोवॉट के हथियार

डीआरडीओ अब 50 से 100 किलोवॉट की क्षमता वाले DEW और हाई-एनर्जी माइक्रोवेव हथियारों पर काम कर रहा है, जिससे भारत को ड्रोन हमलों से निपटने में सस्ती और टिकाऊ तकनीक मिल सकेगी।

वैश्विक रेस में भारत की मज़बूत एंट्री

जहां अमेरिका का Helios सिस्टम 60–120 किलोवॉट लेज़र से लैस है और इज़राइल 100 किलोवॉट ‘Iron Beam’ तैनात कर रहा है, वहीं भारत का लेज़र-DEW कार्यक्रम भी नई ऊंचाइयों को छू रहा है।

चुनौती: मौसम और रेंज

हालांकि DEW तकनीक अभी वातावरण पर निर्भर है और इसकी हिट रेंज पारंपरिक हथियारों से कम है, लेकिन बीम-स्टीयरिंग और अडैप्टिव ऑप्टिक्स जैसी तकनीकी प्रगति भविष्य में इस कमी को दूर कर सकती हैं।

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