नई दिल्ली। भारत की सांस्कृतिक शक्ति और कूटनीति का नया रूप सामने आया है। गणतंत्र दिवस 2025 पर इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो के स्वागत के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया कि भारत जावा स्थित प्रम्बानन मंदिर परिसर के अब तक असंशोधित हिस्सों के संरक्षण में मदद करेगा। यह कदम भारत की “हेरिटेज डिप्लोमेसी” यानी विरासत कूटनीति का हिस्सा है, जो विदेशों में पुरातत्व और संरक्षण परियोजनाओं के ज़रिए भारत की सॉफ्ट पावर को मजबूत करता है।

11 देशों में 20 से ज्यादा हेरिटेज प्रोजेक्ट

पिछले एक दशक में भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने 11 देशों में कम से कम 20 विरासत परियोजनाओं में निवेश किया है। इनमें से 14 परियोजनाएं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संचालित की जा रही हैं। इन परियोजनाओं का उद्देश्य न केवल सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करना है, बल्कि भारत की ऐतिहासिक और धार्मिक विरासत को वैश्विक मंच पर पुनर्स्थापित करना भी है।

प्रम्बानन मंदिर: हिन्दू-बौद्ध साझी विरासत

जावा का प्रम्बानन मंदिर इंडोनेशिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर परिसर है, जिसे 9वीं सदी में बनाया गया था। यह शिव, विष्णु और ब्रह्मा को समर्पित है और इंडोनेशिया की बहुसांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रतीक है। भारत द्वारा इसके संरक्षण में मदद न केवल सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करती है, बल्कि हिंदू-बौद्ध सभ्यताओं के साझा इतिहास को भी पुनर्जीवित करती है।

सॉफ्ट पावर के जरिए रणनीतिक संबंध

भारत की यह “हेरिटेज डिप्लोमेसी” केवल सांस्कृतिक नहीं, बल्कि रणनीतिक हितों से भी जुड़ी है। ऐसे संरक्षण कार्यों के ज़रिए भारत दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य एशिया में कूटनीतिक प्रभाव बढ़ा रहा है, जो चीन की बेल्ट एंड रोड जैसी रणनीतियों का वैकल्पिक जवाब भी मानी जा रही है।

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