आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था स्वच्छ ऊर्जा और डिजिटलीकरण की दिशा में तेजी से बढ़ रही है। इस परिवर्तन की रीढ़ हैं—लिथियम, कोबाल्ट, रेयर अर्थ्स, ग्रेफाइट और वैनाडियम जैसे क्रिटिकल मिनरल्स, जो इलेक्ट्रिक वाहनों से लेकर सेमीकंडक्टर्स, सोलर पैनल और रक्षा उपकरणों तक आधुनिक तकनीकों के मूल में हैं। परंतु इनकी आपूर्ति श्रृंखला नाजुक है और भू-राजनीतिक जोखिमों से घिरी हुई है। यही वह मोड़ है जहां भारत के पूर्वोत्तर की भूमिका उभरती है।
पूर्वोत्तर भारत, जिसमें असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम शामिल हैं, को लंबे समय तक भारत के भूगोलिक छोर के रूप में देखा गया। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में यह सोच बदली है। बीते एक दशक में इस क्षेत्र को राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक प्राथमिकता दी गई है। नई सड़कें, रेलवे लाइनों और हवाई संपर्कों के साथ पूर्वोत्तर अब मुख्यधारा से तेजी से जुड़ रहा है।
हाल ही में केंद्र सरकार ने घोषणा की कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में क्रिटिकल मिनरल्स जैसे लिथियम, कोबाल्ट, क्रोमियम, रेयर अर्थ्स, ग्रेफाइट और वैनाडियम के भंडार मौजूद हैं। नेशनल मिनरल एक्सप्लोरेशन ट्रस्ट (NMET) की चल रही सर्वेक्षण प्रक्रिया में अब तक 38 खनन ब्लॉकों की पहचान की गई है, जिनमें से 7 को नीलामी के लिए स्वीकृति मिल चुकी है।
यह खोज सिर्फ भूगर्भीय नहीं, रणनीतिक भी है। इससे न केवल भारत की खनिज आत्मनिर्भरता बढ़ेगी, बल्कि पूर्वोत्तर को राष्ट्रीय विकास की धारा में मुख्य भूमिका मिलेगी। अब ज़रूरत है कि खोज से क्रियान्वयन की दिशा में तेज़ी से कदम बढ़ाए जाएं—जिसमें बुनियादी ढांचे का विकास, प्रसंस्करण क्षमता और नीतिगत स्पष्टता शामिल हो।
बुनियादी ढांचा प्राथमिकता
पूर्वोत्तर में सड़क, रेलवे और हवाई संपर्क में सुधार हुआ है, लेकिन यह अभी भी पर्याप्त नहीं है। ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर, ट्रांस-अरुणाचल हाइवे, और विस्तारित रेल संपर्क जैसे प्रोजेक्ट्स को और तेज़ी से लागू करना होगा। बेहतर लॉजिस्टिक्स से लागत घटेगी और इस क्षेत्र को राष्ट्रीय सप्लाई चेन का हिस्सा बनाना आसान होगा। साथ ही यह Act East नीति को मजबूती देगा, जिससे पूर्वोत्तर भारत का जुड़ाव दक्षिण-पूर्व एशिया से बढ़ेगा और एक सुरक्षित व स्थिर क्रिटिकल मिनरल्स सप्लाई चेन स्थापित की जा सकेगी।
स्थानीय मूल्यवर्धन व तकनीकी निवेश
केवल खनिज की खोज पर्याप्त नहीं। इन खनिजों को संसाधित और परिष्कृत करने की तकनीकी क्षमता में निवेश ज़रूरी है। R&D में निवेश भारत को तकनीकी आत्मनिर्भरता की ओर ले जाएगा और चीन पर निर्भरता कम करेगा। वर्तमान में चीन क्रिटिकल मिनरल्स की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर एकाधिकार रखता है और इसे भू-राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल भी करता है। इसलिए भारत को इस मोर्चे पर तेज़ी से आगे बढ़ना होगा।
मोदी युग में पूर्वोत्तर का पुनर्जागरण
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘Look East’ नीति को ‘Act East’ में बदला और इसे जमीन पर क्रियान्वित भी किया। टाटा ग्रुप का असम में सेमीकंडक्टर प्लांट इसका सशक्त उदाहरण है। बोगीबील ब्रिज, UDAN योजना, और पूर्वोत्तर के हवाई अड्डों का आधुनिकीकरण क्षेत्र को मुख्यधारा में ला चुका है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के 2025-26 बजट में 120 नए एयरपोर्ट और हेलीपैड की घोषणा ने इस संकल्प को और स्पष्ट कर दिया है।