COP30 की तैयारी कर रही दुनिया के लिए भारत एक आशा की किरण बनकर उभर रहा है। ब्राज़ील के बेलेम में होने जा रहे इस अहम सम्मेलन से पहले भारत ने क्लाइमेट सॉवरेनिटी यानी जलवायु आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ाए हैं।

भारत का कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (CCTS), जो 2023 में लॉन्च हुआ था, अब न सिर्फ इंडस्ट्री और पावर सेक्टर तक सीमित है, बल्कि स्टील, सीमेंट, ट्रांसपोर्ट और कृषि जैसे क्षेत्रों को भी इसमें शामिल किया जा रहा है। इससे भारत का ग्रीन इकोनॉमी बाज़ार 2030 तक 200 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।

डिजिटल टेक्नोलॉजी से बदलेगा जलवायु गवर्नेंस

अब कार्बन ऑफसेट को डिजिटल रूप में सत्यापित किया जाएगा — यानी डीवीसीओ (Digitally Verified Carbon Offsets) तकनीक से। सेटेलाइट इमेजरी, AI और ब्लॉकचेन की मदद से रीयल-टाइम डेटा मिलेगा, जिससे पारदर्शिता और वैश्विक विश्वास दोनों बढ़ेंगे।

COP30 में भारत की रणनीति और वैश्विक भूमिका

भारत Article 6 (6.2 और 6.4) के तहत अंतरराष्ट्रीय कार्बन ट्रेडिंग फ्रेमवर्क से खुद को जोड़ने की तैयारी में है। इससे विदेशी कंपनियां और देश भारत से हाई-क्वालिटी क्रेडिट खरीद सकेंगी — जिससे गांव, जंगल और हरित परियोजनाओं को फंड मिलेगा।

क्लाइमेट फाइनेंस का मुद्दा उठाएगा भारत

2020 तक विकसित देशों द्वारा हर साल $100 बिलियन क्लाइमेट फाइनेंस देने का वादा अधूरा रहा है। भारत अब COP30 में नए क्लाइमेट फाइनेंस फ्रेमवर्क की मांग करेगा — जिसमें किफायती लोन और ब्लेंडेड फाइनेंस शामिल होंगे।

भारत अब सिर्फ फॉलोअर नहीं, ग्लोबल क्लाइमेट लीडर

G20 की अध्यक्षता से लेकर इंटरनेशनल सोलर अलायंस और LeadIT जैसे मंचों पर भारत की भागीदारी से साफ है — भारत अब वैश्विक जलवायु नेतृत्व में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।

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