भारत ने अपनी अंतरराष्ट्रीय कानूनी नीति में एक अहम बदलाव किया है, जो न केवल कानूनी दृष्टिकोण से बल्कि वैश्विक रणनीति के हिसाब से भी महत्वपूर्ण है। पहलगाम आतंकवादी हमले (मई 2025) के बाद, भारत ने इंडस वाटर्स ट्रीटी (IWT) को “अस्थायी रूप से निलंबित” करने का ऐतिहासिक कदम उठाया। यह कदम भारत की कानूनी नीति के नवीनतम परिवर्तन को दर्शाता है, जिसमें अब भारत ने कानून का इस्तेमाल केवल संयमित नहीं, बल्कि एक रणनीतिक टूल के रूप में करना शुरू किया है।

भारत का कानूनी रुख और ऐतिहासिक संकोच

भारत का अंतरराष्ट्रीय कानून से जुड़ा रुख सदैव संकोचपूर्ण और सतर्क रहा है। देश ने कभी भी पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपने अधिकारों का प्रयोग आक्रामक तरीके से नहीं किया, बल्कि इसकी प्राथमिकता हमेशा संविधानिकता और राष्ट्रीय स्वार्थ को बनाए रखना रही। विशेष रूप से, भारत ने पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय विवादों में अपनी कानूनी प्रतिबद्धताओं को ध्यान में रखते हुए संयमित रुख अपनाया।

पैहल्गाम आतंकवादी हमले के बाद की कानूनी रणनीति

पैहल्गाम हमले के बाद भारत ने एक नई कानूनी रणनीति अपनाई, जिसमें अंतरराष्ट्रीय कानून को एक सशक्त उपकरण के रूप में उपयोग किया गया। IWT को निलंबित करना एक स्पष्ट संकेत था कि भारत अब अंतरराष्ट्रीय कानून को विकल्प नहीं, बल्कि रक्षा के रूप में देख रहा है।

इंडस वाटर्स ट्रीटी (IWT) में बदलाव

भारत ने IWT को औपचारिक रूप से समाप्त नहीं किया, बल्कि उसे “अस्थायी रूप से निलंबित” कर दिया, जिससे भारत ने कानूनी अस्पष्टता का फायदा उठाया। इस कदम से भारत ने पाकिस्तान को कानूनी दबाव में ला दिया और यह दिखाया कि अंतरराष्ट्रीय संधियाँ अब केवल बंधन नहीं हैं, बल्कि रणनीतिक लाभ के लिए प्रयोग की जा सकती हैं।

भारत की सेना और कानूनी प्रतिक्रिया: ऑपरेशन सिंधूर

ऑपरेशन सिंधूर भारत की सैन्य प्रतिक्रिया थी, जिसमें अंतरराष्ट्रीय कानूनी सिद्धांतों जैसे स्वयं रक्षा, अनुपातिकता, और संप्रभुता का उपयोग किया गया। भारत ने इसे संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 51 के तहत स्वयं रक्षा का अधिकार बताते हुए यह सुनिश्चित किया कि यह कार्रवाई पूरी तरह से कानूनी थी।

कानूनी राज्यcraft का उदय

यह बदलाव भारत को कानूनी राज्यcraft की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम पर रखता है, जहां कानूनी उपकरणों का उपयोग राष्ट्रीय हितों को प्राप्त करने के लिए किया जा रहा है। यह न केवल कानूनी सम्मति है, बल्कि एक वैश्विक शक्ति के रूप में भारत की पहचान को भी दर्शाता है।

भारत अब न केवल कानूनी नियमों का पालन करने वाला देश नहीं है, बल्कि वह उन्हें पुनः परिभाषित और आकर्षित करने की दिशा में काम कर रहा है। इस नई कानूनी नीति में भारत का दृष्टिकोण अब अधिक आत्मविश्वास और रणनीतिक स्पष्टता के साथ दिखाई दे रहा है।

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