बिहार में संपन्न विशेष मतदाता पंजीकरण (SIR) अभ्यास का उद्देश्य तीन मुख्य बिंदुओं पर आधारित था –

  1. वोटरों का समावेश: 18 वर्ष से अधिक उम्र के सभी योग्य नागरिकों को पंजीकृत करना।
  2. अयोग्य मतदाताओं का बहिष्कार: मृतक, स्थायी रूप से अन्यत्र गए या गैर-नागरिकों के नाम हटाना।
  3. चुनावी पारदर्शिता: मतदाता सूची की सटीकता और पारदर्शिता बनाए रखना ताकि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हो सकें।

1 अगस्त 2025 को चुनाव आयोग ने ड्राफ्ट मतदाता सूची प्रकाशित की, जिसमें लगभग 65 लाख मतदाता “अनुपस्थित, स्थानांतरित या मृत” (ASD) के रूप में हटाए गए। 1 अगस्त से 1 सितंबर तक हटाए गए मतदाताओं को दस्तावेज़ के साथ दावा दाखिल करने का मौका दिया गया, जिसमें आधार कार्ड का उपयोग भी शामिल था। ECI को यह प्रक्रिया 30 सितंबर तक पूरी करनी थी।

चुनाव आयोग ने 91.69% मतदाताओं की भागीदारी के साथ प्रक्रिया पूरी पारदर्शिता के साथ पूरी की। बूथ स्तर के अधिकारियों और राजनीतिक दलों के एजेंटों की निगरानी में काम हुआ।

वहीं, योगेंद्र यादव और कुछ विपक्षी दलों ने 97-दिन की SIR अवधि को कम बताते हुए इसे “वोटरों के बहिष्कार का अभ्यास” करार दिया। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार ये आरोप तर्कहीन हैं। SIR का उद्देश्य केवल योग्य नागरिकों को मतदान का अधिकार देना है, जो संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुरूप है।

योगेंद्र यादव और उनके समर्थक अवैध प्रवासियों को वोटिंग का अधिकार देने की बात कर रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे लोग न तो भारत और न ही लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के हित में हैं। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने SIR को पूरी तरह लोकतांत्रिक प्रक्रिया माना और चुनाव आयोग को मतदाता सूची संशोधन करने का अधिकार दिया।

कुछ याचिकाकर्ताओं ने SIR के खिलाफ यह तर्क दिया कि यह अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कोई भी अधिकार शर्तों के बिना नहीं है। सभी अधिकार “सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य” के अधीन हैं।

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