भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच, अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं जैसे IMF और वर्ल्ड बैंक जिस तरह पाकिस्तान को आर्थिक मदद देने में तत्पर दिख रही हैं, उस पर सवाल उठ रहे हैं। पाकिस्तान को अगले 10 वर्षों में वर्ल्ड बैंक द्वारा 20 अरब डॉलर की मदद और IMF से अब तक लगभग 8.5 अरब डॉलर की सहायता इस चिंता को जन्म देती है कि क्या ये धन असल में विकास के बजाय ‘दुष्चक्र’ में झोंका जा रहा है।
पाकिस्तान में इस फंड का बड़ा हिस्सा कर्ज चुकाने में इस्तेमाल हो सकता है — एक तरह से यह एक ‘पोंजी स्कीम’ जैसा प्रतीत होता है। IMF की Extended Fund Facility का उद्देश्य देशों को भुगतान संतुलन की समस्या से उबारना होता है, जबकि वर्ल्ड बैंक शिक्षा, पोषण और जलवायु जैसे क्षेत्रों में मदद देता है। परंतु पाकिस्तान द्वारा दी गई सूचनाएं, इन संस्थाओं द्वारा शायद ही कभी गहन जांच से गुजरती हैं, जिससे पारदर्शिता पर प्रश्नचिह्न लगते हैं।
पाकिस्तान के Federal Consolidated Fund पर संसद के निचले सदन का सिर्फ चर्चा का अधिकार है, वोटिंग का नहीं — जबकि भारत में संसद की मंजूरी और CAG की निगरानी अनिवार्य है। इससे यह संदेह गहराता है कि कहीं ये फंड रक्षा खर्च या गुप्त सैन्य ऑपरेशनों के लिए तो नहीं इस्तेमाल हो रहे।
वित्त वर्ष 2024-25 में पाकिस्तान ने रक्षा पर 10 अरब डॉलर से अधिक खर्च किए — जबकि उसकी प्रति व्यक्ति आय $1,459 रह गई है। वहीं, भारत की तुलना में पाकिस्तान का प्रति व्यक्ति रक्षा खर्च $41 है। FATF द्वारा पाकिस्तान को 2022 में ग्रे लिस्ट से हटाना भी भारत के लिए चिंता का विषय बना हुआ है।
भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह चेतावनी दी है कि पाकिस्तान को दी जा रही आर्थिक सहायता का दुरुपयोग कर वह आतंकवाद को बढ़ावा दे सकता है। साथ ही, उसके परमाणु जखीरे की निगरानी भी एक वैश्विक चिंता बन चुकी है, खासतौर पर फील्ड मार्शल असीम मुनीर के सत्तारूढ़ होने के बाद।