Bihar: मधुबनी से लेकर बस्तर तक, भारत के ग्रामीण इलाकों में एक चुपचाप लेकिन क्रांतिकारी बदलाव हो रहा है — और उसका नाम है फूड प्रोसेसिंग। केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री चिराग पासवान ने अपने लेख में इस बदलाव की तस्वीर पेश की है, जिसमें एक युवा उद्यमी ज्ञानेश कुमार मिश्रा ने पारंपरिक मखाना को वैश्विक बाजारों तक पहुंचाया है। उनके ब्रांड ने अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में जगह बनाई है — और यह सिर्फ एक उदाहरण नहीं, बल्कि ‘ग्रामीण भारत से वैश्विक भारत’ की सोच का प्रमाण है।
फूड प्रोसेसिंग: गाँव की रसोई से वैश्विक बाजार तक
आज भारत के हर कोने से छोटे उद्यमी, किसान और स्वयं सहायता समूह PMFME (प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम योजना) के तहत मजबूत हो रहे हैं। अब तक 1.41 लाख से अधिक माइक्रो एंटरप्राइजेज को ₹11,205 करोड़ के लोन मिले हैं। 3.3 लाख से अधिक SHG सदस्यों को सीड कैपिटल मिला है। 1 लाख+ लोगों को स्किल ट्रेनिंग दी जा चुकी है।
मखाना से महुआ तक: भारत के स्वाद को ब्रांड बनाया
जहां मधुबनी का मखाना फ्लेवर स्नैक्स बन गया है, वहीं बस्तर की जनजातीय महिलाएं महुआ से बना रही हैं चॉकलेट्स, एनर्जी बार और टी। चिराग पासवान ने कहा, अब ये उत्पाद न सिर्फ भारत की दुकानों में हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय शेल्फ पर भी बिक रहे हैं..
औद्योगिक और निवेश की ताकत
Pradhan Mantri Kisan SAMPADA Yojana के तहत अब तक 1,604 परियोजनाएं स्वीकृत, ₹22,000 करोड़ से अधिक का निजी निवेश, 53 लाख से अधिक किसानों को लाभ और 7.6 लाख नौकरियां पैदा हुईं
स्टार्टअप्स और टेक्नोलॉजी: फूड-टेक की नई पीढ़ी
- 5,000+ फूड-टेक स्टार्टअप्स
- AI-enabled traceability, plant-based products, sustainable packaging
- तीन NIFTEM संस्थान, एक बिहार में निर्माणाधीन
गुणवत्ता की गारंटी और विश्वसनीयता
- 100 NABL-accredited फूड टेस्टिंग लैब्स
- 50 irradiation units से shelf life में सुधार
- नेशनल मखाना बोर्ड का गठन — मूल्य संवर्धन और ब्रांडिंग के लिए
फूड प्रोसेसिंग अब सिर्फ एक उद्योग नहीं, बल्कि ग्राम भारत की प्रगति का जरिया बन चुका है। मंत्री चिराग पासवान का कहना सही है — हमारा लक्ष्य साफ है: दुनिया की हर दुकान पर एक ऐसा प्रोडक्ट हो, जिस पर लिखा हो ‘भारत’ — और उसके पीछे हो गांव, किसान और आत्मनिर्भरता की कहानी। यह कहानी सिर्फ मुनाफे की नहीं, गर्व और पहचान की है।