New Decision Of High Court In Dihuli Murder Case: 18 नवंबर 1981 को फिरोजाबाद तब के मैनपुरी जिले के दिहुली गांव में 24 दलितों को ठाकुरों ने गोलियों से भून दिया था। यह घटना आज भी प्रदेश में नृशंस हत्याओं की सूची में सबसे काला पन्ना मानी जाती है। इस केस में 44 साल बाद, 18 मार्च 2025 को निचली अदालत ने जीवित बचे तीन आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई थी।
फांसी की सजा उम्रकैद में तब्दील
लेकिन अब हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले में बदलाव किया है। दोषी रामपाल को बरी कर दिया गया है, जबकि कप्तान और रामसेवक की फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया।
गवाहों की गवाही भी कमजोर
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बरामद बंदूक की फोरेंसिक रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है, और घटना के समय गांव में बिजली नहीं थी, इसलिए हत्यारों की पहचान पर संदेह है। गवाहों की गवाही भी कमजोर और संदिग्ध मानी गई।
हाईकोर्ट ने अब तक की सुनवाई को शून्य माना
यह केस दस्यु प्रभावित क्षेत्र अधिनियम के तहत दर्ज था और इसकी सुनवाई के लिए स्पेशल जज की जरूरत थी। लेकिन 1988 के बाद स्पेशल जज की कोर्ट में सुनवाई नहीं हुई, और हाईकोर्ट ने 1988 से अब तक की सुनवाई को शून्य माना।
दो डकैत अब दुनिया में नहीं
1981 में हुई इस नृशंस हत्या के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मौके का मुआयना किया था। मामले में शामिल राधे और संतोषा नाम के दो डकैत अब दुनिया में नहीं हैं।