लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूर्वी पाकिस्तान यानि बांग्लादेश से विस्थापित होकर राज्य में बसे परिवारों को बड़ी खुशखबरी दी है. सीएम योगी ने इनकी जमीन का मालिकाना हक देने के लिए ठोस कदम उठाने का आदेश दिया है. सोमवार को लखनऊ में एक उच्चस्तरीय बैठक के बाद सीएम योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को इस दिशा में तेजी से काम करने के निर्देश दिए.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह फैसला विस्थापित परिवारों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आया है. यह कदम न केवल इन परिवारों को उनकी जमीन का मालिकाना हक देगा, बल्कि उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति को भी मजबूत करेगा और वे समाज में इज्जत के साथ मुख्य धारा में मिलकर रह पाएंगे.
इस दौरान सीएम योगी ने स्पष्ट किया कि यह केवल जमीन के हस्तांतरण का मामला नहीं है, बल्कि उन हजारों परिवारों के संघर्ष और सम्मान की बात है, जिन्होंने 1947 के विभाजन और उसके बाद की परिस्थितियों में भारत में शरण ली. मुख्यमंत्री ने कहा, “ये परिवार दशकों से पुनर्वास और अपने अधिकारों की प्रतीक्षा में हैं. इन परिवारों के साथ संवेदनशीलता और सम्मान के साथ व्यवहार किया जाए. यह सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है कि इन लोगों को उनका हक मिले.”
कहां-कहां बसे हैं विस्थापित…
बता दें कि पूर्वी पाकिस्तान से आए ये परिवार उत्तर प्रदेश के पीलीभीत, बरेली, और रामपुर जैसे जिलों में बसे हैं. इनमें से कई परिवारों को उस समय अस्थायी रूप से जमीन आवंटित की गई थी, लेकिन विधिवत मालिकाना हक नहीं मिला. इस कारण ये लोग कानूनी और सामाजिक असुरक्षा का सामना कर रहे हैं. कई परिवार आज भी अपनी पहचान और अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, क्योंकि उनके पास जमीन के स्थायी दस्तावेज नहीं हैं.
पारदर्शिता के साथ काम करने के निर्देश
सीएम योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि जमीन के स्वामित्व से संबंधित सभी कानूनी औपचारिकताओं को जल्द से जल्द पूरा किया जाए. उन्होंने यह भी सुनिश्चित करने को कहा कि इस प्रक्रिया में पारदर्शिता बरती जाए और किसी भी परिवार को अनावश्यक परेशानी न हो. योगी ने कहा कि यह कदम न केवल इन परिवारों को आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करेगा, बल्कि उनके आत्मसम्मान को भी बढ़ाएगा.
ये लोग कब आए थे भारत?
बताते चलें कि 1947 के विभाजन और 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के बाद, पूर्वी पाकिस्तान से लाखों लोग भारत में शरण लेने आए थे. उत्तर प्रदेश में बसे इन परिवारों को अक्सर अस्थायी कैंपों या कॉलोनियों में जगह दी गई, लेकिन कई मामलों में उनके पास जमीन के मालिकाना हक के दस्तावेज नहीं थे. इस वजह से वे संपत्ति बेचने, उस पर कर्ज लेने या अन्य कानूनी अधिकारों का उपयोग करने में असमर्थ थे.